शिवजी के मस्तक पर चंद्रमा और जटा में गंगा क्यों विराजमान हैं (Shivji Mastak Par Chandrama aur Jata Mein Ganga Kyu Viraajamaan Hai)
हिन्दू धर्म में सभी देवी देवताओं में महादेव का स्थान सबसे अग्रीम और सर्वोत्तम हैं भगवान शिवजी को निराकार और मानसिक सुख देने वाला देवता माना जाता हैं सभी देवी देवताओं की वेशभूषा कहीं ना कहीं से मिलती जुलती है लेकिन हमारे शिवजी कि वेश भूषा रंग रूप और उनकी सवारी सबसे अलग ही है इसलिए यही कारण है जो शिवजी को सभी देवी देवताओं में सबसे अलग और सर्वोच्च माना गया हैं।
शिवजी के शरीर पर स्तिथ उनके प्रतीकों के दर्शन मात्र से ही मनुष्य का जीवन धन्य हो जाता हैं शिव जी के गले में वासुकी नाग, मस्तिष्क पर चंद्रमा और उनकी जटा में गंगा विराजमान रहती है।
बहुत ही कम हिन्दुओ को पता होगा की आखिर क्यों शिवजी के मस्तिष्क पर चंद्रमा और उनकी जटा में गंगा विराजती है और अन्य देवी देवताओं के के शरीर पर क्यों नहीं होते है चन्द्रमा, गंगा और नाग विराजते है?
आज हम आपको बताएंगे कि क्यों शिवजी के मस्तिष्क में चंद्रमा और उनकी जटा में गंगा विराजमान हैं।
शिवजी के मस्तक पर चंद्रमा क्यों विराजमान हैं?
पौराणिक कथाओं के अनुसार चन्द्रमा का विवाह दक्ष की 27 नक्षत्र कन्याओं के साथ संपन्न हुआ था उन कन्याओं में रोहिणी अत्याधिक सुंदर थी चन्द्रमा और रोहिणी भी एक दूसरे के साथ ही सजते थे यह सब देखकर बाकी कन्याओं ने चंद्रमा कि शिकायत अपने पिता दक्ष से की।
दक्ष स्वभाव से ही बहुत ही गुस्से वाले व्यक्ति थे अपनी कन्याओं कि यह दशा देखकर दक्ष ने चन्द्रमा को श्राप दे दिया कि तुम छय रोग से पीड़ित हो जाओगे दक्ष के श्राप देने के कारण चंद्रमा छय रोग से पीड़ित हो गये और धीरे धीरे चन्द्रमा की कलाएं घटने लगी जिससे वो मृत्यु के निकट पहुंच गये थे जब चंद्रमा की आखिरी कलाएं बची थी तब नारद मुनि ने चंद्रमा को मृत्युंजय आशुतोष की आराधना करने को कहा छय रोग से पीड़ित होने के बाद भी चंद्रमा ने मृत्युंजय आशुतोष कि उपासना कि चंद्र के उपसना करने से धीरे धीरे चंद्र की सारी कलाएं वापस आने लगी और चंद्रमा फिर से अपनी कलाओ से युक्त हो गये क्योंकि वह महादेव कि वजह से ठीक हुए थे तो उसने महादेव से उपसाना की महदेव उन्हे अपनी शरण में लेले तभी महादेव ने चंद्रमा को अपने मस्तक पर स्थान दे दिया।

शिवजी की जटा में गंगा क्यों विराजमान हैं?
धरती पर पाप बहुत बढ़ गया था किसी को भी मरने के बाद मोक्ष नहीं प्राप्त हो रहा था भागीरथ के पूर्वजों को भी मरने के बाद मोक्ष न मिल पाया तो उसने भगवान शिवजी की आराधना कि भगवान शिवजी से विनम्र आग्रह करने के बाद महादेव ने उसे मुक्ति का मार्ग दिखाया तब भागीरथ ने मां गंगा की उपासना की भागीरथ की उपासना से मां गंगा ने उसके अनुरोध को स्वीकार कर लिया लेकिन गंगा का वेग अधिक होने के कारण वो धरती पर नहीं आ सकती थी यदि मां गंगा धरती पर आती तो धरती पाताल लोक में धस जाती जिसकी वजह से मां गंगा धरती पर आने में असमर्थ थी तब भागीरथ ने फिर से शिवजी का आव्हान किया तब शिवजी ने मां गंगा को धरती पर आने के लिए कहा और गंगा को अपनी जटाओ में स्थान देने के लिए कहा मां गंगा के स्वर्ग लोक से आते ही शिवजी ने गंगा को अपनी जटाओं में स्थान दे दिया और धरती लोक पर गंगा भी उतार आती जिससे सभी मानव जाति को मरने के उपरांत मोक्ष प्राप्त हो सका।
