क्यों शिव युगों से सिद्ध और श्रेष्ठ है (Why Shiva is perfect and superior since ages)
क्यों शिव युगों से सिद्ध और श्रेष्ठ है (Why Shiva is perfect and superior since ages)
शिव के युग में अर्थात शिव के समय के अंतिम काल में भारत के विभिन्न समाजों ने भगवान शिव की श्रेष्ठता को स्वीकार कर लिया था। किसी मनुष्य को हम श्रेष्ठ माने इसे लेकर भी कोई द्वन्द नहीं था वेद में शिव श्रेष्ठ पुरुष और देवता के रूप में स्वीकार हो गए थे। वैदिक युग के जो मनुष्य देवी – देवताओं को माना करते थे उन्होंने शिव को अन्यतम श्रेष्ठ देवता के रूप में स्वीकार कर लिया था और उनकी पूजा भी आरंभ कर दी थी।इसके अतरिक्त अनेक लोगों ने शिव द्वारा निर्देशित पथ पर चलना भी प्रारंभ कर दिया था। वे वेद के केवल यज्ञादि अंश को मानते थे और बाकी अन्य बातों में शिव को ही मानते थे और जो लोग वेद के यज्ञादि अंश को नहीं मानते थे वे केवल शिव को ही मानते थे। वे शिव को शैव के नाम से पुकारे जाते थे।
शैव तांत्रिक के समय में शैव तंत्र के शिव किसी विशेष बीज मंत्र के द्वारा नहीं पूजे जाते थे क्योंकि मनुष्य शिव को इतना अपना आत्माम मानते थे कि बीज मंत्र के द्वारा उनके आवाहन की आवश्यकता ही नहीं पड़ती थी शिव को उन्होंने अपना अत्यंत धनिस्थ या अपने नितांत आत्मीय के रूप में पाया गया था इस कारण उन्होंने किसी बाहरी बीज मंत्र का आवाह्न नहीं किया किंतु उस युग में जो वेदों का अनुसरण करते थे उन्होंने भी शिव को मान लिया था। उस युग में शिव पूजा में मूर्ति की प्रथा ही नहीं थी फिर भी लोग शिव को मानते थे।
जब भारत ने जैन धर्म का प्रसार हो रहा था उस समय शिव जन गण के देवता बन चुके थे। मनुष्य के जीवन के सभी चरणों में उनका प्रभाव असाधारण था तथा समस्त लोगो के मन में वे विराट देवता थे। जब शिवलिंग कि पूजा का आरंभ हुयी तब जैन तंत्र में, बौद्ध तंत्र में और शिवो तर्र तंत्र में उनका अन्य प्रकार से व्याख्या हुआ वह व्याखया थी जो भी भावधारा को भी स्पंद थे सब एक महाकाश में प्रभावित हो रहा है और उनकी सारी भावधारा स्पंद की अभिव्यक्ति की परिणीति हो रही है। उस परम सत्ता के अस्तित्व में इस कारण यह शिवलिंग समस्त प्राप्ति का पथ हैं। जब जैन युग में शिवलिंग की पूजा आरम्भ हुई तो वह भारत के रोम रोम में बस गई और यही से नूतन प्रकार से शिव पूजन प्रारंभ हुआ इससे शिव के ध्यान मंत्र और बीज मंत्र में परिवर्तन प्रारंभ हो गया।
शिव के समय में किसी बीज मंत्र को जप कर शिव की पूजा नहीं की जाती थी शिव उनके नितांत अपने थे उनके अत्यंत निकट थे और वे उनके मन के प्रिए थे शिव को यह विराट जनप्रियता थी। इसके कारण ही बौद्ध धर्म के युग में भी शिव को नहीं छोड़ा गया शिव मूर्ति या शिवलिंग कि पूजा स्वीकृति हुई थी इसमें केवल थोड़ा सा अंतर था अर्थात सात हजार वर्षों के पहले के वे प्रदेपुरूष सदाशिव और जैन युग और बौद्ध युग के शिवो युग के पौराणिक शिव एक ही नहीं थे बीज मंत्र बदल गया और भी एक बात है जिसे लक्ष्य करने का पता चलेगा की बौद्ध धर्म जब मार्ग बदल कर पौराणिक शैव धर्म में रूपांतरित हुआ था उस काल का नाम था नाथयुग।
इस नाथ धर्म के जो गुरु होते थे उन सभी के नाम के अंत में नाथ शब्द का प्रयोग किया जाता था और उन गुरुओं को शिव का अवतार माना जाता था उनकी मृत्यु के बाद उनकी मूर्ति का निर्माण कर उन्हें शिव का अवतार मानकर उनकी पूजा की जाती थी जब वे शिव की पूजा करते थे तब शिव के नाम के अंत ने भी नाथ शब्द रखते थे जैसे तारकनाथ, विशवनाथ इत्यादि ये सब नाथयोगियो के आराध्य शिव हैं।