इंद्र देव की पूजा क्यों नहीं की जाती है? (Why Indra Dev is not Worshiped)

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इंद्र देव की पूजा क्यों नहीं की जाती है? (Why Indra Dev is not Worshiped)

जैसा कि हम सभी लोग जानते है कि इंद्रदेव को देवताओं का राजा कहा जाता हैं इसलिए उन्हें देवराज इंद्र भी कहा जाता है जब इंद्र देव देवताओं के राजा है तो आखिर क्यों देवराज इंद्र की पूजा नहीं की जाती है जबकि अन्य देव जैसे सूर्यदेव, शनिदेव, चंद्रदेव आदि की पूजा होती है। आखिर ऐसी कौन सी वजह रही होगी जिसके कारण देवराज इंद्रदेव की पूजा नहीं की जाती है और क्यों पूरे भारत वर्ष में देवराज इंद्र का एक भी मंदिर नहीं बना हुआ है।

आज हम आपको बताएंगे कि क्यों देवराज इंद्र की हिन्दू धर्म में पूजा नहीं की जाती है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार इंद्र किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं था बल्कि स्वर्ग की गद्दी जिसको मिलती थी उसको ही इंद्र की उपाधि दी जाती थी और उस व्यक्ति को ही इंद्रदेव कहा जाता था। ऐसा माना जाता था कि इंद्रप्रस्थ पर जो भी आसीन होता था उसे हमेशा स्वर्ग लोक की गद्दी खोने का डर लगा रहता था इसलिए वो हमेशा ही अपने से ज्यादा शक्तिशाली साधु या राजा की तपस्या को स्वर्ग लोक की अप्सरा रम्भा, उर्वशी को उस
साधु के पास भेजकर उनकी तपस्या को भंग कर देता था या राजाओं के युद्ध के अश्वमेघ घोड़े को चुरा लेता था।

Why Indra Dev is not Worshiped

ऐसी ही एक कथा का वर्णन पौराणिक कथाओं में मिलता है जिसमे यह बताया गया है कि क्यों इंद्रदेव की पूजा धरती लोक या कहीं पर भी नहीं की जाती है कथा के अनुसार एक गौतम ऋषि धरती लोक पर रहते थे और उन्ही जंगलों में एक कुटिया बनाकर तपस्या में अपनी लीन रहते और अपनी पत्नी के साथ रहा करते थे और उनकी पत्नी का नाम अहिल्या था अहिल्या दिखने में अत्यंत सुंदर और अत्यंत ही गुडवान स्त्री थी अहिल्या को जो भी पुरुष पहली बार देखता था वो उसी सुंदरता पर मोहित हो जाता था।

एक बार की बात है अहिल्या अपनी कुटिया में अपने पति गौतम ऋषि की सेवा कर रही थी उसी समय इंद्रदेव भी वही से गुज़रे और वो अहिल्या की सुंदरता देखकर उस पर मोहित हो गए हालांकि उस समय इंद्रदेव वहां से चले गए लेकिन फिर भी उनका मन अहिल्या की सुंदरता में लगा रहा कि कैसे वो उस रूपवान स्त्री सर्वसुख उन पर न्यौछावर कर दे जिस कारण  उन्होंने छल करने की सोची और उन्हें ये ज्ञात हुआ कि उस रूपवान स्त्री का पति गौतम ऋषि तपस्या के लिए अपनी कुटिया से सुबह ही चले जाते है तो इंद्रदेव ने गौतम ऋषि को कुटिया से बाहर जाते देख गौतम ऋषि का रूप धारण कर लिया और उनकी कुटिया में पहुंच गए जहां अहिल्या अपने कामों में लगी थी गौतम ऋषि को देखकर अहिल्या ने सोचा आज मेरे स्वामी इतनी जल्दी कैसे पधार गए लेकिन अहिल्या ने गौतम ऋषि से कुछ भी ना पूछा और अपने पति जी सेवा में जुट गई तभी गौतम ऋषि भी कुटिया में पधारे लेकिन कुटिया में अपनी पत्नी अहिल्या जी किसी बहरूपिए के साथ अपने रूप में देखा तो वे तुरंत समझ गए की ये देवराज इंद्र ही होंगे तभी आवेश के क्रोध में आकर गौतम ऋषि ने इंद्र देव को श्राप दे दिया कि जिस पत्नी कि योनि के लिए तुम इतने आशक्त रहते हो वहीं एक हजार योनिया तुम्हारे शरीर पर निकाल जाए और देवताओं के राजा होने के बाद भी धरती लोक पर तुम्हारी पूजा ना के बराबर हो और अपनी पत्नी अहिल्या को पत्थर बनने का श्राप दे दिया ये सुनते ही इंद्र देव अपने वास्तविक रूप में आ गए और गौतम ऋषि के पैरो को पकड़कर उनके सामने गिड़गिड़ाने लगे इंद्र को ऐसा गिड़गिड़ाते देखकर गौतम ऋषि को उन पर दया आ गई और उन्होंने इंद्र के शरीर पर उगी एक हजार योनियों को आंखो में परिवर्तित कर दिया लेकिन अहिल्या के बार बार कहने के बाद भी गौतम ऋषि ने उनकी एक ना सुनी और उनको एक शिला में परिवर्तित कर दिया और कहा जब त्रेता युग में भगवान राम जन्म लेंगे और उनके चरण जब भी इस शिला पर पड़ेंगे तब तुमको अपने पापो से मुक्ति मिल जाएगी और तभी से वो शिला वहीं पर स्थापित हो गई।
यही कारण है कि स्वर्ग के राजा देवराज इंद्र की पूजा हिन्दू धर्म में नहीं की जाती है।

एक दूसरी कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने जब द्वापर युग में द्वारका में जन्म लिया और बड़े हुए तब उन्होंने देखा कि सभी ब्रजवासी बड़े ही धूम धाम से इंद्र कि पूजा की तैयारी कर उनकी पूजा अर्चना करने जा रहे है तभी श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों से कहा कि तुम लोगो को ऐसे व्यक्ति की पूजा नहीं करनी चाहिए जो ना ही ईश्वर हो और ना ही ईश्वर के समान हो तुम लोग गाय माता की पूजा की नहीं करते जिससे हम सभी लोगो का जीवन चलता है इसके आलवा श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत की पूजा करने को कहा पहले तो सभी ब्रजवासियों ने कृष्ण की बात मान ली और कहा ऐसा करने से इंद्र देव क्रोधित हो जाएंगे जिससे हमारे ब्रज में वर्षा नहीं होगी यदि वर्षा नहीं हुई तो हम लोग अपनी गायो को चारा और अपने परिवार को अनाज कहां से लेकर खिलाएंगे तब श्रीकृष्ण ने कहा कि हम किसी ऐसे देवता की पूजा क्यों करे जो हमें भय और डर दिखाता है अगर हमें चढ़ावे का पूजन करना ही है तो हमें गोवर्धन पर्वत की पूजा करेंगे तभी से ब्रज में इंद्रउत्सव नहीं गोवर्धन उत्सव मनाया जाने लगा यह बात इंद्र को पता चली कि ब्रजवासियों ने उनकी पूजा ना करके गोवर्धन पर्वत की पूजा करना शुरू कर दी तो इंद्र क्रोधित हो गए और क्रोध में आकर उन्होंने अपने प्रलय मचाने वाले बादलों को आदेश दिया कि ब्रजवासियों को पूरा जलमग्न कर दो और पूरी द्वारका में तबाही ला दो इंद्र के प्रलयकारी बादलों ने ऐसा ही किया उन्होंने इतनी मूसलाधार बारिश की पूरा द्वारका डूबने लगा ब्रजवासियों में हाहाकार मच गया तभी श्रीकृष्ण ने अपनी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को धारण किया और सारे ब्रजवासियों को उस गोवर्धन पर्वत के नीचे आने को कहा गोवर्धन पर्वत के नीचे आते ही सारे ब्रजवासियों को उस मूसलाधार बारिश का कोई असर न हुआ यह देखकर इंद्र का अभिमान चुर चुर हो गया उसके बाद श्रीकृष्ण जी इंद्र देव से युद्ध भी हुआ जिसमें इंद्र देव परास्त हुए और तभी से द्वारका में गोवर्धन पर्वत की पूजा होने लगी।

तो दोस्तो पूजा उसी कि होती है जिसका कोई मंदिर हो जब किसी देव का मंदिर ही नहीं होगा तो पूजा किस चीज की होगी।

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