कौन है ब्रह्मराक्षस और ये कैसे बनते है? (Who is Brahmarakshas and how are they formed)
कौन है ब्रह्मराक्षस और ये कैसे बनते है? (Who is Brahmarakshas and how are they formed)
ब्रह्मराक्षस हिन्दू धर्म के अनुसार नर की आत्मा या राक्षस है यह अत्रिप्त आत्माओ की श्रेणी में आते है ब्रह्मराक्षस असल में ब्राह्मण की आतम होती है जो जन्म तो आत्मा है जो जन्म तो ब्राह्मण कुल में लेती है लेकिन बुरे और पतित कर्म करने लगती है तब लम्बे जीवन के बाद उन्हें राक्षस यौनि में भटकना पड़ता है इसकी वजह उनका अपनी विद्या का गलत इस्तेमाल करना भी हो सकता है|
ब्राह्मण वर्ण में कुछ उच्च ज्ञानी इंसान का जन्म इसलिए होता है ताकि वो दुसरो को अपने ज्ञान से प्रक्षितित कर सके जब वो ऐसा नहीं करते है तब वो मृत्यु के बाद ब्रह्मराक्षस बन जाते है|
कैसे होता है ब्रह्मराक्षस का उदभव
ब्रह्मराक्षस बनने के बाद उनमे ज्ञान का स्तर उतना ही रहता है जितना मरने से पहले होता है लेकिन वो इंसानो को खाने लगते है दूसरे शब्दो में उनमे ब्राह्मण और राक्षस दोनों के गुण होते है|
हिंदी धर्म के पुराणों में इसका विस्तृर वर्णन है जिसके अनुसार ऐसे ब्रह्म राक्षस में काफी शक्तियाँ होती है और बहुत ही कम लोग उन्हें इस यौनि से मुक्ति दिला पाते है या उनपे काबू पा सकते है|
कौन है ब्रह्मराक्षस और ये कैसे बनते है? (Who is Brahmarakshas and how are they formed) |
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सातवीं सदी में संस्कृत के कवि मयूरभट्ट ने एक कविता सूर्यशतक लिखी थी जिसमे एक ब्रह्मराक्षस ने सूर्यमंदिर जो की औरंगाबाद बिहार में पड़ता है उसमे खुदको सजा देने के लिए इस कविता का कविता का व्याख्यान किया था जो की खुद ब्रह्मराक्षस बना था इस तरह वो खुदके पाप का पप्रायश्चित कर रहा था|
मयूरभट्ट ने आत्माओ के प्रस्तान के बाद सफलतापूर्वक जैसे ही 100वा अध्याय पूरा किया उसे मुक्ति मिल गयी|
अलग अलग जगह अलग ब्रह्मराक्षस की कहानी प्रचलन में है कई कहानियों जैसे विक्रमबेताल, पंचतंत्र में ब्रह्मराक्षस का जिक्र किया गया है इन कहानियों के अनुसार ब्रह्मराक्षस अगर किसी भी व्यक्ति पे मेहरबान हो जाते थे तो उसे धन, सम्पदा और ऐश्वर्य से संपन्न बना थे|
दूसरी कहानियों में इनका वर्णन एक राक्षस जिनके सर पे सींग होते है के रूप में किया गया है इनके अनुसार यह विशालकाय और मतलबी होते थे इसके सर पर ब्रह्म की तरह ही चोटी होती थी जैसा की जीन का स्वरुप होता है यह पेड़ो पर उलटे लटके रहते थे जैसा की विक्रमबेताल में वर्णित है|
दक्षिण भारत की में प्रचलित ब्रह्मराक्षस कहानी के अनुसार हिन्दू मंदिर इन ब्रह्मराक्षस का वर्णन करते हुए मिलते है मंदिर की बाहरी दीवारों पर इनका चित्रण मिलता है जिनकी पूजा भी होतीं है इन्हे सम्मान दिया जाता है और तेल का दिया भी जलाया जाता है| कई मंदिरो में इन्हे भगवन के प्रतीक रूप में पूजा जाता है इनकी मान्यता अनुसार किसी भी निर्माण कार्य से पहले ब्रह्मराक्षस की अनुमति लेना जरुरी है|
क्योकि ब्रह्मराक्षस ब्राह्मण कुल से बनते है इसलिए इनकी शक्तिया और उम्र अन्य बेताल से ज्यादा होती है ब्रह्मराक्षस के पास बुरी प्रवति होती है जिसके प्रभाव से पेड़ सुख जाते थे और इन्हे उसे छोड़ना पड़ता था|ब्रह्मराक्षस के पास अपने ब्राह्मण स्वरुप का ज्ञान और तप होता है इसलिए इन्हे पराजित और नियंत्रण करना बेहद मुश्किल होता है इनकी मुक्ति स्वयं ब्रह्मा है क्योकि इनका उद्भव ब्रह्मा से हुआ है|
मन जाता है पीपल पेड़ ब्रह्मराक्षस को आबादी दूर रखने के लिए होता है अन्य मान्यता के अनुसार ब्रह्मराक्षस को पीपल पेड़ पसंद होता है जिस पर वे वास करते है अगर कोई इसे हटा दे तो ब्रह्मराक्षस क्रोधित हो जाते है दोनों ही मान्यता में पीपल का पेड़ इन्हे आबादी वाले इलाके से दूर रखता है|
ब्राह्मण कुल के कारण ब्रह्मराक्षस किसी अन्य पेड़ पर वास नहीं क्र सकते क्योकि और सभी पेड़ निम्न श्रेणी के होते है ब्रह्मराक्षस कहानी के अनुसार और मान्यताओं के कारण ब्रह्मराक्षस बेताल श्रेणी के माने जाते है|
ब्रह्मराक्षस को पहचानना बहुत ही मुश्किल होता है ऐसा मन जाता है जब रावण ने सीता माँ का हरन किया था तो ब्रह्मराक्षस की मदद ली थी रावण ने ब्रह्मराक्षस से बोला था की वो एक सुन्दर मृग बन जाए और उस सुन्दर मृग को जब माँ सीता ने देखा तो राम जी से उसे लाने को कहा जैसे ही राम उस सुन्दर मृग के पीछे गए तब रावण ने माँ सीता को हर लिया|
मतलब ब्रह्मराक्षस किसी का भी रूप ले सकते है इसी तरह जिस इंसान के पीछे ये पड़ जाते है उस इंसान को ब्रह्मराक्षस कई बाते बोलते है जैसे वो देवता है वो आपके घर का पितृ है आदि|
ब्रह्मराक्षस की सबसे ख़ास बात ये है की ब्रह्मराक्षस अच्छा भी करते है और बुरा भी करते है क्योकि ब्रह्मराक्षस के अंदर देव और दानव के गुण होते है| यदि कोई ब्रह्मराक्षस की साधना कर लेता है तो उस इंसान के पास अपार कई साड़ी शक्तिया आ जाती है उन शक्तियों के बल पर वो इंसान कुछ भी कर सकता है| लेकिन ब्रह्मराक्षसकी साधना अकेले नहीं करनी चाहिए ब्रह्मराक्षस की साधना किसी अच्छे गुरु की परामर्श से ही करनी चाहिए अन्यथा आपकी मृत्यु भी हो सकती है|
आप ब्रह्मराक्षस की साधना अमावस्या के दिन से किसी श्मशान के अंदर पीपल के पेड़ के नीचे से शुरू कर सकते है और ये साधना 40 दिन की जाती है|
दोस्तों यदि आपको इसके अलावा कुछ और पता है ब्रह्मराक्षस के बारे में तो नीचे कमेंट करके बताएगा|