किसने दिए थे शिवजी को डमरु, त्रिशुल और नाग? (Who gave Damru, Trishul and Nag to Shivji?)

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किसने दिए थे शिवजी को डमरु, त्रिशुल और नाग? (Who gave Damru, Trishul and Nag to Shivji?)

हमारे हिन्दू धर्म में सभी भगवानों को चाहे वो कोई देव हो या देवी सभी को कुछ ना कुछ अर्पित है या उनसे जुड़ा हुआ है जैसे विष्णु जी के साथ सुदर्शन चक्र मां अंबे के साथ त्रिशूल या फिर हमारे परम पिता परमेश्वर ब्रम्हा जी के साथ कमल का पुष्प वैसे ही हमारे देवों के देव महादेव के साथ भी डमरू, त्रिशुल, नाग और भी अन्य चीजे जैसे उनके मस्तिष्क पर चंद्रमा और जटा में मां गंगा भी विराजमान है।
जैसे ही हम शिवजी का ध्यान करते है हमारी आंखो के सामने वैराग्य शिवजी की एक छवि उनके डमरू, त्रिशुल, नाग के साथ उभरने लगती है। हम लोग पूरे भारत वर्ष या दुनिया में कहीं भी चले जाए हमे शिव मंदिर में या शिवालय में जब हम शिवजी कि प्रतिमा को देखते है तो उस शिव प्रतिमा के साथ डमरू, त्रिशुल और नाग अवश्य ही उनके साथ में होता है ऐसा क्यों  है ? क्या ये सब चीजें शिवजी के साथ ही प्रकट हुई थी या कहीं से अलग-अलग उनके पास आकर उनसे जुड़ती चली गई शिवजी के पास ये सब डमरु, त्रिशुल और नाग कहां से आए आखिर शिवजी के पास ही ये सब क्यों है बाकी अन्य देवी या देवताओं के पास ये सब क्यों नहीं है।

Read In English: Who gave Damru, Trishul and Nag to Shivji? (English)




किसने दिए थे शिवजी को डमरु, त्रिशुल और नाग? (Who gave Damru, Trishul and Nag to Shivji?)

तो आज हम आपको बताएंगे कि शिवजी के पास पवित्र चीजे डमरू, त्रिशुल और नाग कहां से आए और क्या है इन पवित्र चीजों का संबंध भगवान शिव जी साथ।

कैसे मिला शिवजी को त्रिशूल?

भगवान शिव जी सर्वश्रेष्ठ अस्त्र शस्त्र के ज्ञाता हैं पौराणिक कथाओं में शिव पुराण के अनुसार एक कथा कही गई है कि धनुष और त्रिशूल के स्वयं निर्माण कर्ता स्वयं शिवजी है शिवजी ने ही स्वयं धनुष का आविष्कार कर धनुष का प्रयोग सबसे पहले किया था लेकिन फिर त्रिशूल वो शिवजी के पास कहां से आया इस त्रिशूल के बारे में इससे लेकर कोई भी कथा नहीं जुड़ी है लेकिन फिर भी शिव पुराण के अनुसार माना जाता है कि सृष्टि के आरंभ में जब ब्रह्माण्ड से शिवजी प्रकट हुए तो उनके साथ तीन गुण जोकि रज, तंभ और सठ भी प्रकट हुए थे यही तीन गुण शिवजी के तीन शुल अर्थात त्रिशूल बने इन तीनों गुणों के बगैर सृष्टि का सर्जन और
उसमे सामंजस बिठाना संभव नहीं था तभी शिवजी ने इन तीनों गुणों को अपने हाथो में एक शूल में बांधकर रखा जो तीनों शूल मिलकर त्रिशूल बने और कहा यह भी जाता है कि भगवान शिव जी को ये खास त्रिशूल किसी और ने नहीं स्वयं श्रीहरि विष्णु ने दिया था।

कैसे शिवजी के हाथो में डमरु आया? 

भगवान शिव जी के हाथो में डमरु आने की कथा बड़ी ही रोचक है माना जाता है सृष्टि के आरंभ में जब देवी सरस्वती जी प्रकट हुई तो उन्होंने अपनी वीणा से सृष्टि को ध्वनि दी लेकिन इस ध्वनि में कोई भी सुर या संगीत नहीं था तभी उस समय भगवान शिव जी ने नृत्य करते हुए चौदह बार डमरु बजाया और उस डमरु के सुर ताल संगीत से सृष्टि में ध्वनि का जन्म हुआ।
कहा जाता है की डमरु स्वयं भगवान ब्रम्हा का स्वरूप है जोकि दूर से विस्तृत है जैसे जैसे पास आते जाए ये कम होता जाता है।

कैसे पहुंचा शिवजी के गले में नाग?

भगवान शिव जी के गले में जो नाग है उसका नाम वासुकी है शिव स्रोत में कहा जाता है कि ये नाग, नागो के राजा है और पूरे नाग लोक पर इनका ही शासन चलता है समुद्र मंथन में इन्ही का उपयोग कर मंथन को मथा गया था कहते है कि वासुकी नाग भगवान शिव जी के परम भक्त थे वासुकी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव जी ने उन्हें नाग लोक का राजा बना दिया और साथ ही उन्हें अपने गले में एक आभूषण के तौर पर धारण भी कर लिया इससे भगवान शिव जी का सौंदर्य और भी बढ़ गया और नाग लोक के राजा वासुकी भी अमर हो गए।

तो दोस्तो भगवान शिव जी के डमरु त्रिशूल और नाग धारण करने की कथा। आपको अच्छी लगी हो तो जरूर बताईगा।

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