कहाँ है कर्ण का कवच और कुण्डल? (Kaha Hai Karna Ka Kavach aur Kundal)

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कहाँ है कर्ण का कवच और कुण्डल? (Kaha Hai Karna Ka Kavach aur Kundal)

महाभारत के योद्धाओ में कुछ योद्धा ऐसे थे जो पांडवों को अकेले ही हरा सकता था उन योद्धाओं में एक योद्धा कर्ण भी थे| लेकिन श्री कृष्ण की लीलाओ लीलाओं ने पांडवों को महाभारत का युद्ध हारने नहीं दिया|
अपने साथ हुए अन्यायों के कारण ही कर्ण कौरवों की तरफ से युद्ध लड़े थे कौरवों की तरफ से युद्ध लड़ने के बावजूद भी कर्ण को आदर भाव से देखा जाता है क्योकि कर्ण एक धर्मी योद्धा थे जो हमेशा धर्म का ही पालन करते थे|  सूर्यपुत्र कर्ण एक महान योद्धा और ग्यानी पुरुष थे और वह रिश्ते में पांडवो के बड़े भी भाई थे लेकिन यह बात पांडवों और कर्ण को कर्ण के मरने के बाद पता चली थी|

कहाँ है कर्ण का कवच और कुण्डल? (Kaha Hai Karna Ka Kavach aur Kundal)
कहाँ है कर्ण का कवच और कुण्डल? (Kaha Hai Karna Ka Kavach aur Kundal)


कहाँ है कर्ण का कवच और कुण्डल?

कर्ण का जन्म दिव्य कवच और कुण्डल के साथ हुआ था यह कवच और कुण्डल इतने शक्तिशाली थे की इनको भेद पाना किसी भी अस्त और शस्त्र के लिए मुमकिन नहीं था| महाभारत युद्ध में कौरवो का परड़ा भारी था क्योकि कौरवों के साथ महारथी कर्ण के साथ और भी बहुत से महान योद्धा थे जैसे भीष्म पितामह, अश्वस्थामा आदि|

श्री कृष्ण को मालूम था की कर्ण के कवच और कुण्डल के कारण पांडव महाभारत का युद्ध नहीं जीत पाएंगे| इस समस्या के समाधान के लिए श्री कृष्ण ने इंद्र देवता को कर्ण से उनका कवच और कुण्डल मांगने को कहा|
क्योकि श्री कृष्ण जानते थे कि कर्ण एक दानवीर योद्धा है और जो कोई भी उनसे सूर्य पूजा के दौरान जो कुछ भी मांगता था वह उसे ख़ुशी ख़ुशी दे देते थे|
इस योजना के साथ देवराज इंद्र ने एक ब्राह्मण का रूप धारण किया और कर्ण से उनकी सूर्य पूजा के दौरान दान मांगने गए इंद्र ने कर्ण से दान में उनका कवच और कुण्डल माँगा जो की कर्ण ने अपने शरीर से निकालकर देवराज इंद्र को दे दिये जैसे ही इन्द्र कवच कुण्डल लेकर अपने रथ पर सवार हुए वैसे ही उनका रथ जमीन में धस गया और आकाशवाणी हुयी की देवराज आपने यह बहुत बड़ा पाप किया है इसलिए न अब आप आगे जा सकते है न आपका रथ|
तब इन्द्र ने आकाशवाणी से पूछा की इससे बचने का उपाय क्या है तब उन्हें जवाब मिला की आपको दान में मिली वस्तु के बराबर कोई वस्तु दान देनी होगी तब इन्द्र ने कर्ण को अपना वज्र दिया और साथ में कर्ण को ये भी वरदान दिया की इसका उपयोग कर्ण एक ही बार कर पाएंगे और यह वज्र जिसके ऊपर भी चलाया जाएगा वह बच नहीं पायेगा|

उसके बाद इन्द्र ने कर्ण द्वारा प्राप्त कवच और कुण्डल को ले जाकर हिमालय की एक गुफा में सुरक्षित रख दिया माना जाता है की वह कवच और कुण्डल आज भी हिमालय की किसी गुफा में रखा है और तक्षक नाग स्वयं इस कवच और कुंडल की रक्षा करता हैं| |

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