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किस पाप के कारण द्रौपदी की मृत्यु सर्वप्रथम हुई थी (In Mahabharata Due to which sin Draupadi died first)
किस पाप के कारण द्रौपदी की मृत्यु सर्वप्रथम हुई थी (In Mahabharata Due to which sin Draupadi died first)
जैसा कि हम सभी जानते है कि जो भी धरती पर आया है उसे एक ना एक दिन धरती लोक को छोड़कर जाना ही है चाहे वो मनुष्य हो या देवता, क्योंकि धरती पर जन्म लेने के पश्चात श्री कृष्ण को भी अपना देह त्यागना पड़ा था और भगवान श्री राम और माता सीता को भी अपना समय पूरा होने के पश्चात् अपने शरीर को छोड़ना पड़ा था तो वैसे ही महाभारत काल के युद्ध के समय भी ना जाने कितनो ने अपने प्राणों को गवाया था और महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद सभी पांडव अपने भाई कर्ण कि हत्या के पापो से मुक्ति पाने के लिए अपने सारा राज पाठ को अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को सौंपकर स्वर्ग लोक जाने के लिए एक पहाड़ की चढ़ाई कर रहे थे कि तभी पांडवो को पत्नी द्रौपदी की सर्वप्रथम मृत्यु हो गई थी।
तो आज हम आपको बताएंगे कि क्यों सर्वप्रथम द्रौपदी की मृत्यु हुई थी।
सभी पांडव अपने तेरह वर्ष के वनवास काल में हिमालय और पूरे भारत वर्ष का भ्रमण कर चुके थे और अब सभी पांडव मोक्ष प्राप्त करने के उद्देश्य से स्वर्ग लोक जाना चाहते थे सभी पांडव व उनकी पत्नी द्रौपदी सभी हिमालय पर्वत की गोद में चले गए और वहां उन सभी पांडवो को नीरू पर्वत के पास मोक्ष प्राप्त करने के लिए स्वर्ग लोक जाने का रास्ता दिखा सभी पांडव अपनी पत्नी द्रौपदी संग उस पहाड़ की चढ़ाई करने लगे लेकिन उस चढ़ाई के दौरान सबसे पहले द्रौपदी कि मृत्यु हो गई और एक-एक करके सारे पांडव मौत की आगोश में समाते चले गए लेकिन उसमें एक पांडव युधिष्ठिर जीवित थे और वह अपने शरीर के साथ ही स्वर्ग लोक की चढ़ाई को पूरा भी कर सके।
लेकिन एक सवाल जो आज भी लोगो के में आता है कि आखिर क्यों सबसे पहले द्रौपदी कि ही मृत्यु हुई और क्यों उसके बाद उन चारों पांडवो की भी मृत्यु हो गई और क्यों केवल युधिष्ठिर ही अकेले बच पाए और स्वर्ग लोक का दुर्गम रास्ता पार कर पाए।
बात उस समय की है जब यदुवंशियों का साम्राज्य समाप्त ही चुका था और उस साम्राज्य के नाश की बात को सुनकर युधिष्ठिर को बहुत दुख हुआ और महर्षि वेद व्यास की आज्ञा लेकर सभी पांडव और उनकी पत्नी द्रौपदी सहित सभी ने राज पाठ छोड़कर परलोक जाने का निश्चय किया युधिष्ठिर ने सारा राज पाठ परीक्षित को देख भाल के लिए सौंप दिया और परीक्षित का राज्याभिषेक कर दिया उसके बाद सभी पांडव अपनी पत्नी सहित अनेक तीर्थो, पवित्र नदियों व महासागरो को यात्रा कर चलते चलते लाल सागर के किनारे आ गए वहा पहुंचकर अर्जुन ने अपने गांडीव धनुष और तरकश का त्याग नहीं किया था कि तभी वह अग्नि देव उपस्थित हुए और अर्जुन को गांडीव धनुष और तरकश का त्याग करने को कहा और अर्जुन ने ऐसा ही किया।
पांडवो ने मोक्ष कि इच्छा से प्रथ्वी की यात्रा करने को सोचा और उन्होंने उत्तर दिशा की तरफ से चल दिए यात्रा करते करते वे हिमालय पर्वत पहुंच गए उसके बाद पर्वत को लांघकर बालू के समुंद्र में पहुंचे उसके बाद उन्हें नीरू पर्वत दिखाई दिया सभी तेजी से उस पर्वत की तरफ बढ़ने लगे उन्हें वह एक कुत्ता मिलता है वो कुत्ता भी उनके साथ में उस पर्वत की तरफ बढ़ने लगा।
कुछ दूर चलते ही द्रौपदी गिर पड़ी द्रौपदी को गिरता देख सहदेव बोले कि द्रौपदी ने कोई पाप ना किया तो फिर वो क्यों चल बसी तब युधिष्ठिर ने कहा कि द्रौपदी ने विवाह पांचों पांडवो से किया लेकिन वो प्रेम सबसे ज्यादा अर्जुन से करती थी यह कहकर युधिष्ठिर ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और आगे चल दिए तभी कुछ दूर चलने के बाद सहदेव की गिर पड़े तब युधिष्ठिर ने बताया कि सहदेव अपने आगे ना ही किसी को विद्वान और ना ही बड़ा समझते थे इसी दोष के कारण वो स्वर्ग लोक नहीं जा सके और कुछ देर बाद नकुल भी गिर पड़े तब भीम के पूछने पर युधिष्ठिर ने बताया कि नकुल को अपने रूप पर बहुत अभिमान था इसलिए उनकी ये दुर्दशा हुई कुछ देर बाद अर्जुन भी गिर पड़े तब युधिष्ठिर ने फिर से भीम सेन को बताया कि अर्जुन को अपने पराक्रम पर बहुत अभिमान था वो एक दिन में अपने पराक्रम से हज़ारों शत्रु को मरने की बात करते थे और ऐसा अर्जुन नहीं कर पाते इसलिए अर्जुन भी स्वर्ग लोक नहीं जा पाए और थोड़ी ही देर बाद भीम भी गिर पड़े तब युधिष्ठिर ने भीम को बताया कि तुम बहुत खाते थे और अपने बल का झूठा प्रदर्शन करके थे इसलिए तुम्हारे साथ भी यही हुआ यह कहकर युधिष्ठिर आगे चल दिए और वो कुत्ता भी युधिष्ठिर के साथ चलता रहा कुछ ही देर बाद इंद्र अपना रथ लेकर रास्ते में आ गए और युधिष्ठिर से रथ पर बैठकर स्वर्ग लोक चलने कि कहा तब युधिष्ठिर ने कहा कि क्या आप मेरे भाई और पत्नी की स्वर्ग लोग लेकर चलेंगे तब इंद्र ने कहा कि वे सब पहले से ही अपना शरीर त्याग कर स्वर्ग लोक पहुंच गए है केवल आप ही स्वशरीर स्वर्ग लोक जाएंगे तब युधिष्ठिर ने कहा कि ये कुत्ता मेरा परम भक्त है लेकिन इंद्र ने उस कुत्ते को स्वर्ग लोक जाने से इंकार कर दिया युधिष्ठिर को इंद्र द्वारा समझाने पर भी इंद्र अपने बात पर अटल रहे तभी वो कुत्ता अपने वास्तविक रूप में आ गया वो कुत्ता स्वयं यमराज थे युधिष्ठिर कि दृढ निश्चय को दख्कर इंद्र ने युधिष्ठिर को रथ में बिठाया और स्वर्ग लोक लेकर चले गए वहां पहुंचकर युधिष्ठिर ने देखा कि दुर्योधन भव्य सिंहासन पर बैठे और और वहां उसके चारो भाई नहीं थे तब युधिष्ठिर ने भगवान से कहा कि मेरे भाई कहा है मुझे अपने भाइयों के पास जाना चाहता हूं फिर चाहे वह लोक कैसा भी ही तब भगवान ने कहा कि तुम इन देवदूतों के साथ अपने भाइयों के पास जा सकते हो युधिष्ठिर देवदूतों के साथ चल दिए हैं और वह मार्ग बहुत खराब, अंधकारमय और दुर्गंध से भरा था चारो तरफ मुर्दे पड़े हुए थे यह देखकर युधिष्ठिर ने देवदूतों से पूछा और कितना समय लगेगा मेरे भाइयों के पास पहुंचने में देवदूतों ने बताया कि यदि आप थक जाए तो आप वापस स्वर्ग लोक आ जाएंगे की तभी वह लोगो के रोने की आवाजे आने लगी और वो आवाजे उनके चारो भाईयो की थी जो उनसे रुकने के लिए कह रहे थे तभी युधिष्ठिर ने जाने से मना कर दिया और कहा यदि मेरे यहां रहने से मेरे भाइयों को सुख मिलता है तो मैंने यही रहूंगा तभी देवदूत इंद्र के पास गए और सारी बात बताई तभी सारे देवता वहा प्रकट हुए देवताओं के आते ही दुर्गंध दूर हो गई और सुगंधित खुशबू आने लगी तभी इंद्र ने बताया कि तुमने अश्वत्थामा की मृत्यु का झूठा सच बताया था इसलिए तुम्हें भी ये कुछ देर का छलावा झेलना पड़ा अब तुम स्वर्ग लोक चलो और तुम्हारे भाई पत्नी सब वहीं है यह कहकर युधिष्ठिर इंद्र के साथ स्वर्ग लोक चल दिए।