कैसे हुई थी प्रभु श्री राम की मृत्यु (How Lord Shri Rama died)
कैसे हुई थी प्रभु श्री राम की मृत्यु (How Lord Shri Rama died)
आज हम आपको बताएंगे कि कैसे भगवान विष्णु जी के कहे जाने वाले अवतार अयोध्या राजा दशरथ के पुत्र रामलला श्री रामचन्द्र जी की मृत्यु कैसे हुई थी।
दोस्तो आप लोग ये बात सुन कर सोच रहे होंगे की आखिर कैसे भगवान श्री राम की मृत्यु हो सकती है लेकिन ये विधि का विधान है जोकि हमारे परम पिता ब्रह्मा जी के द्वारा बनाया गया है कि जो भी प्राणी इस धरती पर जन्म लेगा उसकी मृत्यु तो निश्चित है चाहे वो मानव जाति हो या पशु पक्षी मृत्यु तो सबकी सुनिश्चित है और न ही हम मृत्यु को टाल सकते ना ही सृष्टि के बनाए गए नियमों को जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है ऐसे ही भगवान श्री राम जी की मृत्यु भी सुनिश्चित थी फिर मृत्यु का कारण चाहे कोई भी क्यों ना रहा हो।
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भगवान विष्णु जी ने रावण का वध करने के लिए मानव रूप में श्री राम अवतार लिया था रावण की मृत्यु के बाद उन्हें मानव शरीर भी त्यागना था जिसके लिए भगवान श्री राम जी की मृत्यु निश्चित थी इसलिए भगवान विष्णु जी ने अपने तरीके से उस शरीर का त्याग किया था भगवान राम और उनके साथियों व उनके तीनों भाईयो और वनार सेना ने अपने शरीर का त्याग किस प्रकार किया था वो भी हम आपको बताएंगे।
आप सभी रामायण कि उस कहानी से अवगत जरूर होंगे कि रावण का वध करने के पश्चात श्री राम जी ने रावण का सारा राज पाठ उसके भाई विभीषण को सौंपकर और अपने वनवास के चौदह वर्ष पूर्ण करके अपनी नगरी अयोध्या वापस आकर सिंहासन पर विराजमान होने के बाद श्री राम जी ने अपने अयोध्या का राज पाठ को संभाला था और सुख शांति पूर्वक अपना गृहस्थ जीवन का सुख भोग रहे थे परन्तु उनके राज्य के माली के द्वारा कहे गए शब्दों ने भगवान राम को दुविधा में डाल दिया था माली ने अपनी पत्नी को एक रात घर से बाहर रहने के कारण घर से निकाल दिया था और ये कहे कर की मैंने राजा राम नहीं हूं कि किसी पराए पुरुष के घर से आई सीता को अपने साथ रख लू भगवान राम के सब जानने के बाद भी को उनकी पत्नी सीता अग्नि की तरह बिल्कुल पवित्र है लेकिन फिर भी अपना राज धर्म निभाते हुए श्री राम जी ने अपनी गृभ्वती पत्नी का त्याग कर दिया था।
भगवान राम ग्यारह हजार वर्षों तक प्रथ्वी पर रहे तभी श्री राम से एकदिन एक तपस्वी मिलने के लिए आते हैं और कहते है कि मैं आपसे अकेले में बात करना चाहता हूं लेकिन बात करने से पहले मै आपसे एक वचन चाहता हूं की जो भी हमारी बातों को सुने या देखे आपको उसको मृत्यु दंड देना पड़ेगा भगवान राम ने उस तपस्वी की बात को मान लिया और लक्ष्मण को आदेश दिया की द्वार पर पहरेदार की जगह तुम खड़े हो जाओ लक्ष्मण के जाते ही वो तपस्वी भयंकर रूप धारण कर लेता है और बोलता है कि मैंने काल हूं और मुझे भगवान ब्रम्हा जी ने भेजा है आपने धरती पर रहने का समय खुद निश्चित किया था और वो समय अब पूरा हो चुका है इसलिए मैं आपको लेने आया हूं तभी द्वार पर दुर्वासा ऋषि आते है और लक्ष्मण से कहते है मुझे श्री राम से मिलना है लेकिन लक्ष्मण अपने वचन का पालन करते हुए ऋषि को मना कर देते है तभी दुर्वासा ऋषि लक्ष्मण को चेतावनी देते है कि यदि तुमने मुझे श्री राम से नी मिलने दिया तो मै तुम्हारे सारे भाईयो और तुम्हारे राज पाठ का विनाश कर दूंगा ये सोचकर लक्ष्मण सोचते है सबके विनाश से अच्छा है कि मैं मृत्यु को गले लगा लू लक्ष्मण उस कक्ष में प्रवेश करते है और श्री राम को दुर्वासा ऋषि के आने की सूचना देते है श्री राम काल से विदा लेते है और अपने दिए हुए वचन से परेशान हो जाते है फिर वो दुर्वासा ऋषि से मिलते है और उस घटना से अवगत कराते हैं।
तब दुर्वासा ऋषि और हनुमान जी श्री राम को सुझाव देते है कि किसी की हत्या का पाप ना लेकर उसका त्याग कर देना भी एक मृत्यु दण्ड ही होता है तब श्री राम लक्ष्मण जी का त्याग कर देते है। श्री राम जी के द्वारा त्याग देने से लक्ष्मण जी रोते हुए सरियू नदी के किनारे पर पहुंच जाते है और अपनी सारी इन्द्रियों को वश में करके नदी में जाकर बैठ जाते है और मृत्यु कि गोद में चले जाते है।
उसके बाद श्री राम भी भाई के त्याग से दुखी होकर सरियु नदी की तरफ़ जाते है तभी हनुमान और उनकी वानर सेना भी पीछे पीछे चल देती है श्री राम के समझाने और मना करने के बाद भी वे सब उनके पीछे पीछे चल देते है भगवान श्री राम नदी के तट पहुंचकर उस नदी के बीच में जाकर अपनी सांसों को रोक कर बैठ जाते है और अपने प्राणों को त्याग देते है और उसके बाद सभी वानर सेना हनुमान जी को छोड़कर और उनके सभी साथी भी उसी नदी में अपने अपने प्राणों का त्याग कर देते हैं।
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