क्यों देवशयनी एकादशी के बाद से बंद हो जाते है शुभ कार्य होना (Devshayani Ekadashi Ke Bad Kyu Nahi Hote Hai Shubh Kaam)

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क्यों देवशयनी एकादशी के बाद से बंद हो जाते है शुभ कार्य होना (Devshayani Ekadashi Ke Bad Kyu Nahi Hote Hai Shubh Kaam)

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार आषाढ़ महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है कुछ लोग इस एकादशी को पद्मनाभा एकादशी भी कहते है। देवशयनी एकादशी के दिन से ही चातुर्मास शुरू हो जाता है और देवशयनी एकादशी के दिन के बाद से ही अगले चार महीने तक मांगलिक कार्य नहीं होते है और 16 संस्कार (गर्भाधान, पुंसवन, सीमंतोन्नायन, जातक्रम, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूड़ाकर्म, कर्णवेध, यज्ञोपवीत, वेदारंभ, केशांत, समावर्तन, विवाह, आवसश्याधाम, श्रोताधाम) जैसे काम भी रुक जाते है। यधपि चातुर्मास में अनुष्ठान, पूजन, गृहप्रवेश जैसे काम किये जा सकते है।
पुराणों के अनुसार इन चार महीनो में भगवान श्री हरी विष्णु योग निद्रा में चले जाते है और उसी निद्रा में रहते हुए क्षीर सागर में आराम करते है। भगवान श्री हरी विष्णु की यह योग निद्रा कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की एकादशी को पूर्ण होती है जिसे देवउठनी एकादशी कहा जाता है। इस दिन ही भगवान श्री हरी विष्णु अपनी योग निद्रा से उठते है।

Devshayani Ekadashi Ke Bad Kyu Nahi Hote Hai Shubh Kaam

देवशयनी एकादशी को सौभाग्यदायनी एकादशी भी कहा जाता है इस दिन विधि विधान के साथ भगवान श्री हरी विष्णु की पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। पद्मपुराण के अनुसार देवशयनी एकादशी के दिन उपवास रखने से अनजाने में हुए पाप भी ख़तम हो जाते है इस दिन रखे गए उपवास को परलोक में मुक्ति में देने वाला भी माना गया है।
देवशयनी एकादशी के बाद लगने वाले चातुर्मास के दौरान पूजा, पाठ आदि करना काफी फायदेमंद माना जाता  है और इससे हमें एक सकारात्मक ऊर्जा भी मिलती है। इस चातुर्मास को भजन, कीर्तन, कथा और भागवत के लिए सबसे अच्छा समय माना जाता है।

पुराणों में वर्णित एक कथा के अनुसार जब भगवान विष्णु ने वामन’अवतार लेकर राजा बलि से तीन पग दान में मांगे थे और राजा बलि ने दान देने के लिए है बोल दिया था तब वामन जी ने अपने पहले पग में पूरी पृथ्वी, आकाश और सभी दिशाओ को ढक लिया दूसरे पग में पूरे ब्रह्माण्ड और स्वर्ग को ढक लिया तब जब राजा बलि के पास जब कुछ नहीं बचा तो उन्होंने ने वामन देव का तीसरा पग अपने सिर पर रखवाया जिससे प्रसन्न होकर भगवान ने राजा बलि को पाताललोक का अधिपति बना दिया और उनसे एक वरदान मांगने को कहा तब राजा बलि ने वामन जी से वरदान माँगा की उसके महल में भगवान हमेशा निवास करे इस प्रकार भगवान को बलि के वरदान में बंधता देख माता लक्ष्मी ने बलि को अपना भाई बनाकर बलि से भगवान को वचन से मुक्त करने का अनुरोध किया। एक मान्यता के अनुसार यह भी माना जाता है कि तब से त्रिदेव भगवान् विष्णु का अनुसरण करके 4-4 महीने पाताल में निवास करते है।
विष्णु जी देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक शिव जी देवउठनी एकादशी से महाशिवरात्रि तक और ब्रह्मा जी महाशिवरात्रि से देवशयनी एकादशी तक पाताल में निवास करते है।

क्योकि श्री हरी विष्णु जी को सृष्टि का पालनहार माना इसलिए है जब विष्णु जी योग निद्रा में चले जाते है तबसे शुभ काम होने बंद हो जाते है और इसे ही चातुर्मास कहा जाता है|

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