मृत संजीवनी विद्या क्या है | Mrit Sanjeevani Vidya

मृत संजीवनी विद्या

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भगवान महादेव विश्व की संहार शक्ति के रूप में प्रख्यात है। यही कारण है कि उनकी आराधना से सभी प्रकार के दैहिक, दैविक तथा भौतिक कष्ट सहज ही समाप्त हो जाते हैं। उनके पंचाक्षरी मंत्र से जहां जीवन के समस्त कष्ट दूर होकर मोक्ष की प्राप्ति होती है, वहीं उनके महामृत्युंजय मंत्र के जप से दुर्भाग्य तथा मृत्यु को भी हराया जा सकता है। लेकिन भगवान शिव का ही एक मंत्र “मृत संजीवनी विद्या मंत्र “जीवन के बड़े से बड़े संकट को दूर कर देता है। इस मंत्र के जप से ही भगवान राम भी रावण को नहीं हरा पा रहे थे और इसी मंत्र के दम पर आज भी कुछ तांत्रिक असंभव को भी संभव कर देते हैं

शास्त्रों में, पुराणों में और हिन्दू धर्म में भी गायत्री मंत्र और मृत्युंजय मंत्र का बहुत ही महत्त्व है। इन दोनों ही मंत्रो को बहुत बड़े मन्त्र माना जाता है, जो आपको सभी संकटों से मुक्त कर सकात्मकता से भर देते है। लेकिन भारतीय शास्त्रों में ऐसे मन्त्र का उल्लेख भी है, जो इन दोनों ही मन्त्रों से शक्तिशाली है क्योंकि यह मंत्र गायत्री और मृत्युंजय मंत्र दोनों से मिलकर बना है। कहते है की इस मंत्र से मृत व्यक्ति को भी जीवित किया जा सकता है अर्थात इस मंत्र के सही जाप से बड़े से बड़े रोग और संकट से मुक्ति पाई जा सकती है। इस मंत्र का नाम है मृत संजीवनी मंत्र।

संजीवनी विद्या की कथा

संजीवनी विद्या की कथा उस काल से जुड़ी है जब देवता और दानव, दोनों ही नश्वर जीवन व्यतीत कर रहे थे। उन्होंने न तो अमृत का पान किया था और ना ही उन्हें अनश्वर रहने का वरदान प्राप्त था। वे सभी भूलोक पर रहकर सामान्य जीवन व्यतीत कर रहे थे। देवता और दानव, दोनों ही ऋषि कश्यप के पुत्र हैं। लेकिन फिर भी जिस समय का जिक्र हम यहां कर रहे हैं उस समय दानव, अपने देव भाइयों की तुलना में ज्यादा ताकतवर थे। वे दोनों सदैव ही आपस में युद्ध किया करते थे।
युद्ध के दौरान देवता और असुर दोनों ही अपने प्राण गंवाते थे, लेकिन असुरों के गुरु शुक्राचार्य के पास एक ऐसी विद्या थी जिसकी सहायता से वे मृत असुरों को फिर से जीवित कर दिया करते थे। शुक्राचार्य, संजीवनी मंत्र को अच्छे से जानते थे। इस मंत्र की सहायता से वे असुरों को पुन: जीवित कर दिया करते थे। दानव मरते और फिर जीवित हो उठते, इससे उनकी ताकत बढ़ती और देवताओं की क्षीण होती जा रही थी। देवता शुक्राचार्य से किसी भी हाल में संजीवनी विद्या हासिल करना चाहते थे लेकिन यह कार्य इतना भी आसान नहीं था।

देवताओ की योजना

देवताओं के गुरु बृहस्पति ने एक युक्ति सोची, उन्होंने अपने पुत्र कच को शुक्राचार्य के पास भेजा। कच को असुरों के बीच भेजने का उद्देश्य था अपनी सेवा भावना, श्रद्धा और गुरु-भक्ति से शुक्राचार्य को प्रसन्न कर संजीवनी विद्या हासिल करना, ताकि देवताओं की सहायता की जा सके। बृहस्पति के पुत्र कच, सभी गुणों में लैस थे। वे यौवन और सुंदरता की मूर्ति तो थे ही साथ ही गुरु-भक्ति और समर्पण की भावना भी उनमें कूट-कूटकर भरी थी।

वृहस्पति के पुत्र कच को मिली संजीवनी विद्या

शुक्राचार्य की रूपवान बेटी देवयानी, कच के यौवन पर मोहित हो उठीं और किसी भी कीमत पर उनसे विवाह करने के स्वप्न देखने लगीं। लेकिन असुर ये जान गए थे कि देवताओं की ओर से कच आचार्य के पास अध्ययन करने के लिए आए हुए हैं। वे भयभीत हो गए कि कहीं शुक्राचार्य, संजीवनी मंत्र कच को ना सौंप दें। क्योंकि अगर ऐसा हो गया तो देवताओं पर विजय हासिल करना मुश्किल हो जाएगा। वे जब भी कच की हत्या करते, शुक्राचार्य उन्हें फिर से जीवित कर देते।

एक दिन शुक्राचार्य से छिपाकर वे कच को मारने में सफल हो गए और उन्होंने कच के अवशेषों को पानी में मिलाकर शुक्राचार्य को पिला दिया। वे इस बात से आश्वस्त थे कि अब तो किसी भी तरह कच जीवित नहीं हो सकता। लेकिन इस बार जो हुआ वह उनकी कल्पना से भी परे था। अब जब शुक्राचार्य को पता चला कि उनके शिष्यों यानि असुरों ने कच की हत्या कर दी है तो फिर से उसे जीवित करने का प्रयास करने लगे। इस प्रक्रिया के दौरान उन्हें पता चला कि कच उनके पेट में हैं। अब शुक्राचार्य, कच को संजीवनी विद्या सिखाने के लिए विवश हो गए थे।
संजीवनी विद्या सीखने के बाद कच उनका पेट चीरकर बाहर निकल आए। कच, संजीवनी मंत्रों को भली-भांति सीख चुके थे और अब वह इस विद्या का प्रयोग कर भी सकते थे। उन्होंने इस विद्या की सहायता से सर्वप्रथम शुक्राचार्य को जीवित किया।

देवताओ को कैसे मिली मृत संजीवनी विद्या

शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी जो हृदय से कच को अपना बनाना चाहती थी, कच के पास विवाह प्रस्ताव लेकर पहुंची। लेकिन कच ने इस प्रस्ताव को यह कहकर ठुकरा दिया कि वह शुक्राचार्य के शरीर से उत्पन्न हुए हैं, इसलिए देवयानी उनकी बहन जैसी हुईं। इस बात से देवयानी अत्यंत क्रोधित हो उठीं और उन्होंने कच को श्राप दिया कि वे कभी भी संजीवनी विद्या का प्रयोग नहीं कर पाएंगे। इस पर कच ने उन्हें उत्तर दिया कि भले ही वह इस विद्या का प्रयोग नहीं कर पाएंगे लेकिन इसे देवताओं को सिखा तो अवश्य देंगे। इस प्रकार देवताओं तक संजीवनी विद्या का प्रसार हुआ।

मृत संजीवनी मंत्र साधना

मृत्युंजय मन्त्र साधना और मृत संजीवनी मन्त्र साधना दोनों अलग -अलग साधना है। हिन्दू धर्म के दुर्लभ शास्त्र कहते हैं, की मृत्युंजय मन्त्र साधना में जिन्दा आदमी की किसी भी कारण से हो सकने वाली मृत्यु को टालने का प्रयास किया जाता है, जबकि मृत संजीवनी मन्त्र साधना में मर चुके आदमी को फिर से जिन्दा करने का प्रयास किया जाता है।
शास्त्रों के अनुसार, ये दोनों विद्याएँ बहुत ही कठिन है पर मृत संजीवनी विद्या विशेष कठिन है क्योंकि इसमें मरा हुआ शरीर चाहे कितनी भी सड़ी गली या कटी फटी अवस्था में हो उसे जिन्दा किया जा सकता है जबकि महामृत्युंजय मन्त्र साधना में मृत्यु चाहे जिस भी कारण (चाहे कैंसर, एड्स हो या कोई एक्सीडेंट) से पास आ रही हो रुक जाती है और शरीर पहले की तरह धीरे धीरे स्वस्थ भी हो जाता है |
महामृत्युंजय मंत्र में जहां हिंदू धर्म के सभी 33 देवताओं (8 वसु, 11 रूद्र, 12 आदित्य, 1 प्रजापति तथा 1 वषट तथा ऊँ) की शक्तियां शामिल हैं वहीं गायत्री मंत्र प्राण ऊर्जा तथा आत्मशक्ति को चमत्कारिक रूप से बढ़ाने वाला मंत्र है। विधिवत रूप से संजीवनी मंत्र की साधना करने से इन दोनों मंत्रों के संयुक्त प्रभाव से व्यक्ति में कुछ ही समय में विलक्षण शक्तियां उत्पन्न हो जाती है। यदि वह नियमित रूप से इस मंत्र का जाप करता रहे तो उसे अष्ट सिदि्धयां, नव निधियां मिलती हैं तथा मृत्यु के बाद उसका मोक्ष हो जाता है।

जाप में इन बातों का ध्यान रखें :

  • जपकाल के दौरान पूर्ण रूप से सात्विक जीवन जिएं। सरसों तेल ,साबुन -शैम्पू ,पेस्ट का मंजन न करें, पूर्ण शारीरिक – मानसिक ब्रह्मचर्य का पालन हो |
  • मंत्र के दौरान साधक का मुंह पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए।
  • इस मंत्र का जाप शिवमंदिर में या किसी शांत एकांत जगह पर रूद्राक्ष की माला से ही करना चाहिए।
  • मंत्र का उच्चारण बिल्कुल शुद्ध और सही होना चाहिए साथ ही मंत्र की आवाज होठों से बाहर नहीं आनी चाहिए।
  • जपकाल के दौरान व्यक्ति को मांस, शराब, सेक्स तथा अन्य सभी तामसिक चीजों से दूर रहना चाहिए। उसे पूर्ण ब्रहमचर्य के साथ रहते हुए अपनी पूजा करनी चाहिए।
  • जिसके लिए किया जा रहा जप या तो उसका भोजन हो अथवा खुद के घर का ही भोजन हो। किसी अन्य के घर का भोजन अथवा अन्न ग्रहण न करें |
  • मृतक अथवा जन्म सूतक से बचाव करें, अस्पताल आदि जाने से बचें जहाँ जन्म -मृत्यु होती हो।

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