योगिनी कौन होती है | योगिनी साधना | Yogini
जोगिनी/योगिनी कौन होती है
योगिनी परमशक्ति और मनुष्य के बीच की एक पारलौकिक कड़ी होती है | जोगिनी अथवा योगिनी प्रकृति की अलौकिक शक्तियां हैं, जिन्हें मूल आदि शक्ति की सहचरी अथवा सहायिकाएं माना जाता है | इनकी स्थिति महाविद्या और सिद्ध विद्याओं के बाद के स्तर पर होती है | यह वह पारलौकिक शक्तियां हैं जिनका अस्तित्व हर युग, हर काल में सदैव बना रहता है | यह अप्सराओं और यक्षिणियों से ऊपर की शक्तियां हैं जिनकी संख्या निश्चित है | इनकी संख्या 64 मानी जाती है और तंत्र के मूल ग्रन्थ भी 64 प्रकार के ही होते हैं |
जोगिनी/योगिनी का अर्थ
योगिनी शब्द योग से बना है योग अर्थात संतुलन, हर तल पे संतुलन | साधना के क्षेत्र में साधक यदि पहले योगिनी साधना सफलता पूर्वक कर ले तो आगे की राह बहुत आसान हो जाती है | योगिनी साधना से साधनात्मक जीवन में सबकुछ फटाफट होने लगता है, हर साधना पहले प्रयास में ही सफल होती है|
सृष्टि में भैरव उत्पत्ति इन्ही योगिनियों की शक्ति से महादेव करते हैं | भोलेनाथ के प्रिय गण महा-भैरव वीरभद्र तो सदा योगिनियोंके साथ नृत्यरत ही रहते हैं | इनकी साधना के बाद साधक स्वयं भैरव बन जाता है| योगिनियाँ अपने साधक को संतुलन स्थापित करने की महाकला प्रदान करती हैं, फिर साधक कभी भी किसी भी तल पे असंतुलित नहीं होता | उग्र से उग्रतम साधना करने पर भी विचलित नहीं होता| साधना की तीव्रतम ऊर्जा को भी आसानी से पचा लेता है, महायोगी बन जाता है| वो भैरवी के साथ साधना करने पर आकर्षित तक नहीं होता भी है | साधना पूर्ण होने के बाद सीधा उठकर अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान कर जाता है, फिर भैरवी की ओर मुड़कर भी नहीं देखता, उसकेपाश में नहीं बंधता |
पारलौकिक शक्तियां के अलग – अलग रूप
सभी पारलौकिक शक्तियां इस ब्रह्माण्ड की सूक्षमतम परमाणु शक्तियां हैं | इनके रूपों का कई दृष्टि से वर्गीकरण करके इन्हें विभिन्न देवी-देवताओं एवं शक्तियों का नाम दे दिया गया है | यही कारण है कि नाम और रूप से कोई विशेष अंतर नहीं पड़ता |
हिन्दू किसी और रूप में उन शक्तियों का लाभ उठाता है, तो मुसलमान किसी और रूप में,अफ़्रीकी-कबायली किसी ओर रूप में और इसाई किसी और रूप में इनकी चमत्कारिक शक्तियों से लाभ उठाते हैं | इन सबमे जो मुख्य बात है, वह है भाव की प्रकृति को समझकर उस भाव की तरंगों को काम में लाने की शक्ति |
आप सरस्वती की साधना करके युद्ध में विजय प्राप्त नहीं कर सकते और काली की साधना करके भावुकता को प्राप्त नहीं कर सकते |
इसी प्रकार सात्विक तकनिकी से तामसिक भाव की तरंगों को नहीं बुला सकते, न ही तामसी भाव की साधना तकनिकी से सात्विक तरंगों को आमंत्रित कर सकते हैं | एक ही शक्ति के आह्वान के लिए अनेक प्रकार की तकनीकियाँ प्रचलित हैं | यह सब विभिन्न गुरुओं का अन्वेशन और जोड़-तोड़ के कारण है |
वाम मार्ग साधना में स्त्री प्रधानता
वाम मार्ग का कहना है, सत्य को अनुभूत करने के लिए प्रकृति की स्थूल शक्तियों का ही सहारा लिया जाना चाहिए और भोग की शक्ति को जगाकर अति तीब्र करके उसे उर्ध्वगामी बना देने से [यानी ऋण धारा को प्रबल करके धन ध्रुव की और मोड़ने से ] शीघ्र ही सत्य का ज्ञान हो जाएगा | सभी आसुरी शक्तियों की साधना इसी उद्देश्य से की जाती है |
जोगिनी या योगिनी, वीर, बेताल, नरसिंह देव, आदि की साधनाएं वाम मार्गी प्रकृति की वे साधनाएं हैं जिन्हें महागुरु गोरखनाथ के शिष्यों ने फैलाया, यद्यपि इनकी परिकल्पना और मूल सामग्री पहले से भी उपलब्ध थी | यह ऋणात्मक साधनाएं हैं जिन्हें स्त्री-पुरुष कोई भी कर सकता है, स्त्रियों को इसमें सफलता जल्दी मिलती है क्योकि वह खुद ऋणात्मक प्रकृति की होती हैं और इन शक्तियों का आगमन उनमे जल्दी होता है इसलिए भी वाम मार्ग में स्त्रियों को सहभागी बनाया जाता है |
योगिनियाँ या जोगिनी
योगिनियाँ या जोगिनी श्मशान की शक्तियां हैं | इनकी साधना करने वाले साधक को ह्रदय से मजबूत और संकल्प में पक्का होना चाहिए, अन्यथा गंभीर हानि हो सकती है | सामान्यतः वाम मार्ग में इनकी साधना में मांस-मदिरा और शमशान, चिता आदि का बहुत महत्व है किन्तु जो श्मशान नहीं जा सकते, मांस मदिरा का प्रयोग नहीं कर सकते वे घर के एकांत में ही इसका प्रयोग सक्षम गुरु के सानिध्य और मार्गदर्शन में कर सकते हैं | इनकी साधना बिना गुरु के नहीं की जानी चाहिए | बिना मांस-मदिरा-श्मशान-चिता के सिद्धि तो मिलती है किन्तु देर से, साथ ही तामसी भाव की दवाओं [तांत्रिक योगों ] का प्रयोग करना होता है |
भैरवी और योगिनी साधना
भैरवी साधना को श्यामा साधना भी कहते हैं, और योगिनी साधना को महा-श्यामासाधना कहते हैं| योगिनियाँ अपने साधक की कड़ी परीक्षा लेती हैं और वो भी साधना के दौरान ही | साधक को अनेको लुभावने, डरावने, एवं वासनात्मक दृश्य दीखते हैं | योगिनियों की यही कोशिश होती है कि साधक कहीं फिसले, कहीं भटके, और फिर वहीँ उसका आखेट कर दिया जाए और इसीलिए आज-कल सिद्ध योगिनी पीठों पे बिरला ही साधना कर पाता है| इनकी पारंपरिक साधना पद्दति अत्यंत जटिल है|
योगिनी सिद्ध होने के बाद क्या होता है ?
योगिनी सिद्ध होने पर इनके मंत्र को सात बार पढ़कर जिस व्यक्ति के आँखों में देखा जाए वह मनोनुकूल आचरण करता है| यह वशीकरण बेहोशी का नहीं अपितु प्रभाव का होता है और प्राकृतिक होता है |जोगिनी सिद्ध कोई साधक किसी स्त्री के नेत्र में काम भाव से देखे तो तो स्त्री के मन में उसे लेकर काम भाव उत्पन्न होगा और वह उसके प्रभाव से सभी आचरण स्वाभाविक रूप से जानते समझते हुए करेगी | यह पश्चिमी हिप्नोटिज्म से अलग एक अजब चीज है | यही कारण है की भैरवी साधना करने के पूर्व वाम मार्ग में योगिनी साधना को प्राथमिकता दी जाती है |
जोगिनियाँ धन भी प्रदान करती हैं | जोगिनियों का आह्वान करके किसी मनचाहे स्त्री या पुरुष को अपने सामने बुलवाया जा सकता है, पर इसमें इतना समय जरुर लगेगा, जितनी देर में उस व्यक्ति की मौजूदगी की जगह से साधना स्थल तक पहुचने में लगती है | जोगिनियों से इसी प्रकार अनिष्ट भी किया जा सकता है | मानसिक रूप से पूर्णतया एक पुरुष अथवा एक स्त्री के प्रति समर्पित व्यक्ति या स्त्री को जोगिनियों से वशीकृत नहीं किया जा सकता, वाही वशीभूत होंगे जिनमे चारित्रिक कमी हो | इसी तरह उच्च ईष्ट का ध्यान लगाने वाला व्यक्ति भी इससे वशीकृत नहीं होगा ,हो भी गया तो सब कुछ आपके मनोनुकूल होने पर भी आपको खतरे में धकेल सकता है |