दिव्य-दृष्टि अथवा तीसरी आँख | Third Eye
दिव्य-दृष्टि अथवा तीसरी आँख
दिव्य-दृष्टि वह दृष्टि होती है जिसके द्वारा दिव्य-ज्योति का दर्शन किया जाता है| दिव्य-दृष्टि को ही ध्यान केंद्र भी कहा जाता है। शरीर के अन्तर्गत यह एक प्रकार की तीसरी आँख भी कहलाती है। इसी तीसरे नेत्र वाले होने के कारण शंकर जी का एक नाम त्रिनेत्र भी है। यह दृष्टि ही सामान्य मानव को सिद्ध-योगी, सन्त-महात्मा अथवा ऋषि-महर्षि बना देती है बशर्ते कि वह मानव इस तीसरी दृष्टि से देखने का भी बराबर अभ्यास करे।
योग-साधना आदि क्रियाओं को सक्षम गुरु के निर्देशन के बिना नहीं करनी चाहिए अन्यथा विशेष गड़बड़ी की सम्भावना बनी रहती है। हमारे हिन्दू संस्कृति में तीसरी आँख का विशेष महत्त्व है | यह अनेक रहस्यों के बारे में बताती है | तीसरी आँख अक्सर देवी देवताओं के चित्रों में चित्रित की जाती है|
क्या वास्तव में जैसा चित्र दिखाते हैं वैसा ही तीसरी आँख होती है ?
तीसरी आँख ठीक वैसी नहीं होती किन्तु सामान्य आँखों से भी करोडो गुना शक्तिशाली होती है | होती तो यह मनुष्यों में भी है, पर यह जाग्रत किसी किसी में होती है | इसे खोलना या जगाना होता है | उसके बाद यह वह देखती है जो लाखों दूरबीने भी नहीं देख सकती |
तीसरी आंख की ऊर्जा वही है जो ऊर्जा दो सामान्य आंखों को चलाती है। ऊर्जा वही है, सिर्फ वह नई दिशा में नए केंद्र की ओर गति करने लगती है। यह केंद्र दो आंखों के बीच में स्थित है। तीसरी आंख किसी भी क्षण सक्रिय हो सकती है। लेकिन इसे सक्रिय होने के लिए ऊर्जा चाहिए। और सामान्य आंखों की ऊर्जा को यहां लाना होगा। जब हम सामान्य आंखों से देखते हैं तब हम सचमुच स्थूल शरीर से देखते हैं।
तीसरा नेत्र स्थूल शरीर का हिस्सा नहीं है; यह दूसरे शरीर का हिस्सा है, जिसे सूक्ष्म शरीर कहते हैं। स्थूल शरीर के भीतर उसके जैसा ही सूक्ष्म शरीर भी है; लेकिन यह स्थूल शरीर का हिस्सा नहीं है।
तीसरी आंख सक्रिय होने के बाद क्या होता है?
तीसरी आंख के सक्रिय होते ही हम एक नए आयाम में प्रवेश करते हैं। अब हम वे चीजें देख सकते हैं जो स्थूल आंखों के लिए दृश्य नहीं हैं। तीसरे नेत्र के सक्रिय होने पर अगर हम किसी आदमी पर निगाह डालेंगे तो हम उसकी आत्मा में झांक लेंगे। यह वैसे ही है जैसे स्थूल आंखों से स्थूल शरीर तो दिखाई देगा, लेकिन आत्मा दिखाई नहीं देगी। तीसरी आंख से देखने पर हमे जो दिखाई देगा वह शरीर नहीं होगा; वह वह होगा जो शरीर के भीतर रहता है। इसलिए जिस क्षण हम इसके द्वारा देखते हैं हमे सूक्ष्म जगत दिखाई पड़ने लगता है। अगर एक प्रेत भी यहां पास में बैठा हो तो वह हमे नहीं दिखाई देगा। लेकिन अगर हमारी तीसरी आंख काम करने लगे तो हम प्रेत को देख लेंगे । क्योंकि सूक्ष्म अस्तित्व सूक्ष्म आंखों से ही देखा जा सकता है।
तीसरे नेत्र का जागरण
अगर हमारी दो आंखें बिलकुल ठहर जाएं, वे स्थिर हो जाएं, तो उनके भीतर ऊर्जा का प्रवाह भी ठहर जाता है। ऊर्जा प्रवाहित है, इसलिए ही आंखों में गति है। कंपन या गति ऊर्जा के कारण है। किसी स्थान पर दृष्टि स्थिर करने से, इधर—उधर देखे बिना उस पर टकटकी बांधने से एक गतिहीनता पैदा होती है। जो ऊर्जा दोनों आंखों में गतिमान थी वह अचानक गति बंद कर देगी। लेकिन गति करना ऊर्जा का स्वभाव है; ऊर्जा गतिहीन नहीं हो सकती। आंखें गतिहीन हो सकती हैं, लेकिन ऊर्जा नहीं।
इसलिए जब ऊर्जा इन दो आंखों से वंचित कर दी जाती है, जब उसके लिए आंखों के द्वार अचानक बंद कर दिए जाते हैं, जब उनके द्वारा ऊर्जा की गति असंभव हो जाती है, तो वह ऊर्जा अपने स्वभाव के अनुसार नए मार्ग ढूंढने में लग जाती है। और तीसरा नेत्र निकट ही है, दो भृकुटियों के बीच, आधा इंच अंदर है। उस ऊर्जा के लिए वह निकटतम बिंदु है। ज्यों ही इन दो आंखों से ऊर्जा का बहना बंद करेंगे, त्यों ही ऊर्जा अपना मार्ग ढूंढ लेगी और वह तीसरी आंख से बहने लगेगी। तब हम ऐसी चीजें देखने लगते हैं जिन्हें कभी न देखा था; ऐसी चीजें महसूस करने लगते हैं जिन्हें कभी नहीं महसूस किया था। और तब हमे ऐसी सुगंधों का अनुभव होगा जिन्हें जीवन में कभी नहीं जाना था।
फिर एक नया लोक, एक सूक्ष्म लोक सक्रिय हो जाता है। यह नया लोक अभी भी है, तीसरी आंख भी है, सूक्ष्म लोक भी है, दोनों हैं; लेकिन अप्रकट हैं। एक बार हम उस आयाम में सक्रिय होते हैं तो हमे बहुत सी चीजें दिखाई देने लगेंगी।
त्राटक क्रिया से तीसरे नेत्र का जागरण
तीसरे नेत्र के जागरण का सर्वोत्तम तरीका त्राटक है | त्राटक में आँखों की गति को रोक दिया जाता है |मन के भागने के साथ आँखें भी भागती रहती हैं | त्राटक में आँखों को रोककर मन एक ही दिशा में ले जाने का प्रयत्न होता है | जब आँखें स्थिर हो जाएँ और दृष्टि को अनवरत एक ही स्थान पर केन्द्रित कर दिया जाए तो उर्जा प्रवाह बदलने लगता है | मन की दिशा या कल्पना की दिशा में फिर ऊर्जा जाने लगती है, प्रथमतः अवचेतन के दृश्य और बाद में इच्छित दृश्य दीखते हैं |
योग मार्ग में तासरे नेत्र को जाग्रत करने के लिए ध्यान का सहारा लिया जाता है जब दोनों आँखें बंद कर दी जाती हैं, किन्तु यह मुश्किल इसलिए होता है कि कल्पना दौड़ती रहती है, व्यक्ति का एकाग्र होना मुश्किल होता है | त्राटक, दैवीय चित्र, मंत्र ,आज्ञा चक्र पर विशिष्ट पदार्थ का लेपन और मानसिक उर्जा को एक विशेष लक्ष्य यहाँ दिया जाता है अतः जागरण शीघ्रता से होता है |
तीसरी आंख खुलने के फायदे
तीसरी आंख सक्रिय हो जाए और कोई आदमी मरने वाला हो तो हम यह जान लेंगे की यह जाने वाला है| मृत्यु का अपना प्रभाव होता है। अगर कोई मरने वाला होता है तो समझो कि मृत्यु ने पहले ही उस पर अपनी छाया डाल दी होती है और तीसरी आंख से इस छाया को महसूस किया जा सकता है, देखा जा सकता है। जब एक बच्चा जन्म लेता है तो जिन्हें तीसरी आंख के प्रयोग का गहरा अभ्यास है वे उसी क्षण उसकी मृत्यु का समय भी जान सकते हैं। लेकिन उस समय मृत्यु की छाया अत्यंत सूक्ष्म होती है। लेकिन किसी की मृत्यु के छह महीने पहले वह व्यक्ति भी कह सकता है कि यह आदमी मरने वाला है जिसकी तीसरी आंख थोड़ी भी सक्रिय हो गई है। तीसरी आंख के खुलते ही हमे लोगों का प्रभामंडल अर्थात औरा दिखाई देने लगता है।