सर कटी छिन्नमस्तिका देवी का रहस्य | who is Maa Chinnamasta

सर कटी छिन्नमस्तिका देवी का रहस्य | Maa Chinnamasta

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छिन्नमस्ता Chinnamasta दस महाविद्या देवियों में से छठी देवी हैं। इनके एक हाथ में स्वयं का ही कटा हुआ सिर रखा होता है। इनका स्वरूप जितना दिलचस्प है, इतना ही दिलचस्प उनकी उत्पत्ति की कहानी है। कैसे हुई माता छिन्नमस्ता की उत्पत्ति और क्यों इनकी पूजा करना खतरनाक माना जाता है?

माता छिन्नमस्ता काली का एक बहुत ही विकराल स्वरूप हैं। हालांकि, इन्हें जीवनदायिनी माना जाता है।छिन्नमस्ता देवी अपने मस्तक को अपने ही हाथों से काट कर, अपने हाथों में धारण करती हैं। इस देवी की उत्पत्ति कैसे हुई और इनका स्वरूप ऐसा क्यों है, इससे जुड़ी एक बहुत ही दिलचस्प कथा है।

छिन्नमस्तिका देवी उत्पत्ति | Chinnamasta

मार्कण्डेय पुराण और शिव पुराण के अनुसार, जब देवी ने चण्डी का रूप धरकर राक्षसों का संहार किया था, तो चारों ओर उनका जय घोष होने लगा। परन्तु देवी की सहायक योगिनियाँ जया और विजया की खून की प्यास शान्त नहीं हो पाई थी। इस पर उनकी रक्त पिपासा को शान्त करने के लिए माँ ने अपना मस्तक काटकर अपने रक्त से उनकी रक्त प्यास बुझाई। इस कारण माता को छिन्नमस्तिका नाम से पुकारा जाने लगा। छिन्नमस्तिका देवी को तन्त्र शास्त्र में प्रचण्ड चण्डिका और चिन्तापूर्णी माता जी भी कहा जाता है।

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार मां भगवती अपनी सहचरियों के संग मंदाकनी नदी में स्नान कर रही थी। उसी समय माता की सहचरियों को तीव्र गति से भूख लगी और भूख की पीड़ा के चलते उनका चेहरा मलीन पड़ गया। उन्होंने माता से भोजन की व्यवस्था करने को कहा लेकिन माता ने स्नान करने तक इंतज़ार करने कहा। लेकिन भूख से व्याकुल उन दो सहचारियों ने उनसे तत्काल भोजन प्रबंध की याचना की, तो मां भगवती ने तत्काल अपने खडग से अपना सिर काट लिया। मां भगवती का कटा सिर उनके बाएं हाथ में आ गिरा। इससे रक्त की तीन धाराएं निकली। दो धाराओं से सहचरियों रक्त पीने लगीं और तीसरी रक्त धारा से मां स्वंय रक्त पान करने लगी। इस प्रकार मां छिन्नमस्तिका Chinnamastika का प्रादुर्भाव हुआ।

माँ को अपने भक्त अत्यंत प्रिय हैं । भक्तों के लिए वात्सल्य की प्रतिमूर्ति है माँ । यदि भक्तों के लिए माँ को अपना सर भी काटना पड़ जाये तो माँ देर नहीं करती । अपना लहू पिलाकर भी भक्तों को नया जीवन प्रदान करती है माँ

छिन्नमस्ता की पूजा करना क्यों माना जाता है खतरनाक?

छिन्नमस्तिका देवी एक प्रचण्ड डरावनी, भयंकर तथा उग्र रूप में विद्यमान हैं। देवी छिन्नमस्ता की आराधना जैन तथा बौद्ध धर्म में भी की जाती है तथा बौद्ध धर्म में देवी छिन्नमुण्डा वज्रवराही के नाम से विख्यात है। छिन्नमस्ता देवी मृत्यु की प्रतीक स्वरूप हैं। देवी, योग शक्ति, इच्छाओं के नियन्त्रण और यौन वासना के दमन की विशेषकर प्रतिनिधित्व करती हैं। छिन्नमस्ता देवी अपने मस्तक को अपने ही खड्ग से काटकर, अपने शरीर से पृथक करती हैं तथा अपने कटे हुए मस्तक को अपने ही हाथ में धारण कर उसका रक्त पीती हैं।

छिन्नमस्ता देवी मन्दिर | Temple of Chinnamasta

देवी का यह स्वरूप अत्यन्त ही भयानक तथा उग्र है और उनकी भयावह तथा उग्र स्वरूप के कारण ही, कहीं आम मंदिरों में या घरों में उनकी पूजा नहीं की जाती है। इनकी कुछ मन्दिरों में ही पूजा-आराधना की जाती है।
छिन्नमस्तिका मन्दिर भारत के झारखण्ड राज्य के रामगढ़ ज़िले में रजरप्पा में स्थित छिन्नमस्ता देवी को समर्पित एक हिन्दू मन्दिर व तीर्थस्थान है।
हिमाचल प्रदेश के होशियारपुर नामक शहर में है जहां पर माता चिंतपूर्णी साक्षात रूप में विराजमान है उन्हें छिन्नमस्तिका के नाम से जाना जाता है

तांत्रिको की देवी Chinnamastike

देवी छिन्नमस्ता का सम्बन्ध तन्त्र क्रियाओं से अधिक है, इसलिए वो तान्त्रिकों या योगियों द्वारा ही अधिकतर पूजी जाती हैं। देवी की पूजा साधना में विधि का विशेष ध्यान रखा जाता है और उनकी पूजा सामान्य लोगों को नहीं करने की सलाह दी जाती है। देवी का स्वरूप अत्यन्त ही गोपनीय है, जिसे केवल सिद्ध साधक ही जान सकते हैं।

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