अदृश्य/गायब कैसे होते हैं | Gayab Hona

लोग हमको किस प्रकार देख पाते है ?

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हम जानते हैं कि किसी भी वस्तु के दिखने के लिए प्रकाश का होना जरूरी है। इसी कारण सूर्य को आँखों और प्रकाश का देवता भी माना जाता है। जब प्रकाश की किरणें किसी वस्तु पर पड़ती हैं तो वे परावर्तित होकर हमारी आंख से टकराती हैं। आंख की पुतली से आगे गुजरकर ये किरणें रेटिना या गोलक के लेंस से होते पीछे की ओर एक निश्चित दूरी पर उसका बिंब बनाती हैं। इस बिंब के साथ जो स्नायु जुड़े रहते हैं वे इसकी सूचना मस्तिष्क को देते हैं। जिससे उस वस्तु की आकृति हमें दिखाई देती है। जब आँख पर पलक गिरी होती है अर्थात आँख बंद रहती है तो परावर्तित प्रकाश की किरणे आँख के लेंस तक नहीं पहुचती और पीछे बिम्ब नहीं बनता अतः कुछ दिखाई नहीं देता |
किसी वस्तु पर प्रकाश की किरण पड़े किन्तु परावर्तित न हो तो किरण किसी की आँख तक नहीं पहुचेगी और वस्तु किसी को नहीं दिखेगी, अथवा अगर किसी वस्तु में यह क्षमता हो की वह प्रकाश को सोख लेगा अर्थात अवशोषित कर लेगा तब प्रकाश की किरणे परावर्तित अर्थात टकराकर वापस नहीं लौटेंगी और वस्तु नहीं दिखेगी | एक और स्थिति है अगर किसी वस्तु के आरपार प्रकाश किरण हो जाएँ तो भी वस्तु से परावर्तन नहीं होगा और वस्तु नहीं दिखेगी |

सिद्ध योगी अपने आपको कैसे अदृश्य/गायब करते है?

योगिक साधना के जानकार के लिए यह परावर्तन क्रिया सुनिश्चित प्रणाली के तहत होती है और उसकी इच्छानुसार होती है । योगी एक ऐसी सिद्धि प्राप्त कर लेता है कि वह उपस्थित होते हुए भी किसी को दिखाई नहीं देता। योग की भाषा में इस क्षमता को अंतर्ध्यान होना कहा जाता है। योगी अपनी सिद्धि के बल पर अपने शरीर का रंग ऐसा बना लेता है जिससे कि प्रकाश की किरणें परावर्तित ही नहीं होती। जिससे दूसरे लोगों की आंखों में उसका बिंब बनता ही नहीं है। अर्थात योगी के शरीर में साधना बल से ऐसी क्षमता आ जाती है की वह प्रकाश किरणों को अवशोषित कर लेता है जिससे प्रकाश का परावर्तन ही नहीं होता और किसी की आँख तक वापस होकर प्रकाश किरणे नहीं पहुचती | इसी कारण उस योगी को कोई देख नहीं सकता।

योग और तन्त्र शास्त्रों में गायब होने की सिद्धि

इसके अतिरिक्त योग और तन्त्र शास्त्रों में गायब होने की एक अन्य विधि का भी उल्लेख मिलता है। सिद्ध योगी पंच तत्वों से बने अपने शरीर के अणु परमाणुओं को आकाश में बिखेर कर सूक्ष्म शरीर धारण कर लेता है। यह सुक्ष्म शरीर किसी को भी दिखाई नहीं देता। यह स्थिति एक अति उच्च अवस्था है जहाँ योगी अथवा तांत्रिक प्रकृति में भौतिक नियंत्रण कर पाता है | वह पंच तत्वों को तोडकर बिखेर और पुनर्संयोजित कर सकता है |इससे योगी सूक्ष्म शरीर से कुछ ही क्षणों में कितनी ही दूर आ जा सकता है।
हमने अनेक कथाओं – कहानियों में सूना है की अमुक योगी ने हाथ हवा में उठाये और अमुक पदार्थ या वस्तु उसके हाथ में आ गयी जिसे उसने स्थूल रूप से सम्मुख व्यक्ति को दिया | यह अवस्था होती है वातावरण के पंचतत्वों को नियंत्रित कर स्थूल कर देने की क्षमता की | ज्ञातव्य है की हाइड्रोजन और आक्सीजन तथा नाइट्रोजन आदि सब गैसें वातावरण में बिखरी है और इन्ही के हाइड्रोजन आक्सीजन से पानी, इसी में नाइट्रोजन मिला तो ग्लूकोज बन जाता है | अनुपात मात्र बदलता है पदार्थों के अनुसार |अगर इनपर नियंत्रण हो जाए तो कोई कुछ भी बना सकता है | यही क्षमता बेहद उच्च स्तर पर योगी अथवा तांत्रिक में आ जाती है | सिद्ध योगियों के पास इसी तरह की अनेक अद्भुत क्षमताएं होती हैं। ये अद्भुत सिद्धियां कोई जादु या चमत्कार नहीं है। यह सिद्धियां एक निश्चित वैज्ञानिक प्रक्रिया के तहत कार्य करती हैं।

अष्टांग योग में अदृश्य होने की सिद्धि

अष्टांग योग के प्रणेता महर्षि पतंजलि ने गायब होने की इस यौगिक सिद्धि का उल्लेख अपने ग्रंथ में किया है। वे लिखते हैं कायरूप संयमात्तद्ग्राह्यशक्तिस्तंभेचक्षुस्प्रकाशासंयोगेंतर्धानं। (विभूति पाद सूत्र 21) यानि शरीर के रूप में संयम करने से जब उसकी ग्रहण शक्ति रोक ली जाती है। तब आंख के प्रकाश का उसके साथ संबंध न होने के कारण योगी अंतर्धान हो जाता है |

कुण्डलिनी के अनाहत चक्र को जाग्रत करके गायब होना

योग और तन्त्र में एक निश्चित अवस्था के बाद योगी अथवा तांत्रिक अपने शरीर को कहीं रखते हुए अपने सूक्ष्म शरीर में कहीं भी आ जा सकता है, जहाँ वह किसी को दिख भी सकता है, बात भी कर सकता है, मार्गदर्शन कर सकता है | अक्सर गुरु इसी माध्यम से अपने शिष्यों या जरूरतमंद तक पहुँचते हैं | जब योग से अथवा तंत्र से कुंडलिनी जागरण होता है और कुंडलिनी पांचवें चक्र अर्थात अनाहत चक्र तक पहुँच जाती है तो व्यक्ति में धीरे धीरे यह क्षमता आने लगती है की वह अपने सूक्ष्म शरीर को बाहर निकाल सके विचरण कर सके | इसकी एक निश्चित प्रक्रिया होती है और स्थूल शरीर को सुरक्षित रखते हुए सूक्ष्म को बाहर निकाला जाता है | एक सूक्ष्म अदृश्य तन्तु से सूक्ष्म शरीर स्थूल शरीर से जुड़ा रहता है|

सतत अभ्यास से साधक या गुरु इस सूक्ष्म शरीर में भ्रमण करता है और लोक -परलोक के साथ अन्य गुरुओं, महान आत्माओं, अन्य योनियों से संपर्क कर सकता है | सूक्ष्म शरीर केवल विद्युतीय शरीर होता है जिसके आर-पार प्रकाश किरणे आ जा सकती हैं इस कारण प्रकाश परावर्तन नहीं होता और कोई उसे देख नहीं सकता | किसी को दिखाने के लिए योगी अथवा तांत्रिक जब चाहता है तभी कोई उसे देख सकता है अन्यथा वह गायब रहकर सब कुछ देख सुन सकता है | इस सूक्ष्म शरीर की गति बहुत तीब्र हो सकती है जिससे योगी अथवा तांत्रिक मिनटों में कहीं पहुच सकता है | अक्सर योगी और सिद्ध इसी शरीर में विचरण करते हैं |

महाविद्या साधक के पास सिद्धि

किसी उच्च महाविद्या साधक के पास कुछ इसी तरह की मिलती जुलती शक्ति आती है |जब कोई महाविद्या पूर्ण तया साधक के अनुकूल हो उसके शरीर को अपना लेती है अर्थात उस महाविद्या की ऊर्जा से कोई साधक संतृप्त हो जाता है तो उसका महाविद्या से सम्बन्धित चक्र अति सक्रिय और सशक्त होते हुए कुंडलिनी को जाग्रत कर उस चक्र तक उदीप्त कर देता है और वहां से वह अनाहत तक पहुच जाता है अथवा अनाहत को उद्दीप्त करता है |
इस स्थिति में उपरोक्त प्रक्रिया से सूक्ष्म शरीर भ्रमण भी हो सकता है और कही एक ही स्थान पर बैठे हुए किसी अन्य स्थान पर अपना एक ऊर्जा शरीर भी भेजा जा सकता है |किसी को स्वप्न में मार्गदर्शन देना ,किसी को अपने होने या उपस्थिति का आभास देना तो मात्र किसी महाविद्या के पूर्ण संतृप्ति और चक्र क्रियाशीलता पर ही हो जाता है |तंत्र में एक छुद्र विद्या की साधना की जाती है जिसे मुश्लिम हमजाद साधना कहते हैं और हिन्दू अपनी नकारात्मक शरीर की साधना |इस प्रक्रिया में कुछ समय बाद व्यक्ति अपने ही रूप और छवि को कहीं भेजकर कार्य करा सकता है और अन्य स्थान पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकता है |यह छोटी तांत्रिक साधना है और इसमें साधक गायब नहीं होता अपितु अपनी ऊर्जा को निर्देशित करता है

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