क्यों प्रिय है शिवजी को सावन का महीना (Kyu Priy Hai Shivji Ko Sawan Ka Mahina)
क्यों प्रिय है शिवजी को सावन का महीना (Kyu Priy Hai Shivji Ko Sawan Ka Mahina)
सावन के महीने का विशेष महत्त्व होता है और सावन का महीना भगवान शिवजी को समर्पित किया जाता है।इस सावन के महीने में की गई पूजा अर्चना का फल अवश्य ही मिलता है और सावन के महीने में विशेष तौर पर की गई पूजा का मनवांछित फल अवश्य मिलता और हमारी सारी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती है।
पूरे देश में सावन के महीने को एक त्योहार की तरह मनाया जाता है और ये परम्परा हमारे देश में सदियों से चली आ रही है और यह सावन का महीना भगवान शिवजी की उपासना करने का सबसे अच्छा और उत्तम महीना माना जाता है।
कहा ये भी जाता है कि समुद्र मंथन भी इसी सावन के महीने में शुरू हुआ था और भगवान शिवजी ने मंथन से उत्पन्न हुए विष को ग्रहण किया था उस विष की तपन और जलन को कम करने के लिए शिवजी को जल अर्पित किया जाता जिससे उस विष की तपन कम हो सके। शिवजी को जल धीर – धीरे शिवलिंग पर अर्पित किया जाता है। सावन का महीना जलतत्व से संबंधित है इसलिए ये सावन का महीना हरियाली लाता है इस महीने में महिलाएं व कन्याएं विशेष तौर पर साज श्रृंगार करती है जिसमें हरी चूड़ियां मेंहदी का विशेष महत्त्व दिया जाता है हरा रंग हमारी आंखो में ठंडक और शीतलता प्रदान करता है और महेंदी हाथ है पैर में लगाने से शरीर में शीतलता प्रदान होती हैं।
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सावन मास का महत्त्व
श्रावण मास हिंदी महीने के पाचवे महीने में आता है और इसी महीने से वर्षा ऋतु का आगमन भी होता है जो हमारे जीवन में खुशियां लेकर आता है शिवजी को श्रावण माह के महीने का देवता भी कहा जाता है क्योंकि शिवजी को इस महीने में विभिन्न विभिन्न तरीको से पूजा जाता है और पूरे माह उत्सव के रूप में मनाया जाता और सोमवार को विशेष तौर पर शिवजी को पूजा आराधना की जाती है और हमारे भारत देश में पूरे उत्साह और जोश के साथ इस महीने का स्वागत कर उसे में मनाया जाता है मेंहदी दिमाग को शांत और तेज़ भी बनाता है सावन के महीने में हरे रंग के वस्त्र पहने से सौभाग्य में वृद्धि होती हैं और पति पत्नी के बीच स्नेह भी बढ़ता है।
कहा यह भी जाता हैं कि दक्ष प्रजापति की पुत्री मतासती ने इसी महीने में अपने प्राणों को त्याग दिया था और कई वर्षों तक श्रपित जीवन जिया था और कुछ वर्षों बाद उन्होंने हिमालय राज के घर पुत्री के रूप में जन्म लिया था और शिवजी कठोर का ध्यान कर उन्होंने शिवजी को अपने पति के रूप में पाने की मनोकामना को पूर्ण किया था और माता पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिवजी ने उनकी इच्छा पूर्ण की थी और माता पार्वती को अपनी अर्द्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया था तभी से शिवजी का एक और नाम अर्धनारेस्वर भी पड़ा और भगवान शिवजी ने फिर से माता सती को पार्वती के रूप में प्राप्त किया था इसलिए ये सावन का महीना भगवान शिवजी को अत्यंत प्रिए है। यही कारण है कि इस महीने में कुवारी कन्याएं अगर ये सावन के महीने की व्रत व पूजा करती हैं उन्हें मनवांछित वर की प्राप्ति होती है।
ज्योतिष विशेषक की माने तो एक मान्यता ये भी है कि महिलाओं को और खास तौर से कुआंरी कन्याओं को शिवलिंग को हाथ नहीं लगाना चाहिए महिलाओं व कुआंरी कन्याओं को शिवलिंग के करीब जाने की आज्ञा नहीं होती वो इसलिए क्योंकि शिवजी बहुत गंभीर तपस्या में लीन रहते हैं। देवों के देव आदिदेव महादेव की तुंग भद्र की तपस्या में कोई विघ्न ना उत्पन हो इसलिए महिलाओं व कुआंरी कन्याओं को शिवलिंग के पास जाने या शिवलिंग को छूने की अनुमति नहीं होती हैं।
पुराणों में एक मान्यता ये भी है कि भगवान शिवजी ने धरती पर आकर अपने ससुराल में विचरण किया था और जहां धरती माँ ने उनका अभिषेक कर भगवान शिवजी का स्वागत किया था इसलिए भी ये महीना हिन्दू धर्म के अनुसार विशेष पूजनीय है।
वर्षा ऋतु के चौमासा में पृथ्वी के पालनकर्ता भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं और इस वक्त पूरी सृष्टि भगवान शिवजी को अर्पण हो जाती है अर्थात चौमासा ने भगवान शिवजी को प्रसन्न करने हेतू उनके भक्त विशेष तौर पर पूजा उपासना करते है और कई प्रकार के धार्मिक पूजा का आयोजन किया जाता हैं जब जब सावन का महीना आता है तब तब सभी लोग खुश हो जाते है क्योंकि धरती पर हरियाली लौट आती है और ये हरियाली हमारे जीवन में अपार खुशियां लेकर आती है।
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