तारापीठ के कापालिक बामाखेपा | Who was Bamakhepa
एक समय में मां तारा और बामाखेपा के बीच एक जली हुई रोटी को लेकर मां बेटे में झगड़ा हो गया था मां तारा ने बामाखेपा Bamakhepa के सिर पर बेलन मारा, तो बामाखेपा लहूलुहान हो गया उस मां तारा ने उसे ठीक कर मुर्ति में समा गई और बामाखेपा जब होश में आया जोर जोर से चिल्लाने लगा मां मां कहकर रोने लगा वो अपना मां तारा की मुर्ति मार मार कर लहुलुहान हो गया उस समय बाबा कामराज वायु मार्ग से होते हुए आये और बामाखेपा को समझया और उन्हें कपाल भेदन का ज्ञान दिया उन्हें कापालिक उपदेश देकर हमेशा के उन्हें अमर होने का वरदान दिया कहा जाता है महासमाधि के पश्चात भी वे आज शरीर विराजमान हैं और अप्रत्यक्ष रूप में मां तारा पीठ शमशान में रहते हैं।
वामाखेपा Bamakhepa मां तारा के साधक
आज हम आप सभी को बंगाल के सच्चे साधक वामाखेपा जी के बारे में विस्तार पूर्वक बता रहे हैं। वामाखेपा जिन्हें “तारापीठ के महामहिम अघोर कापालिक के रूप में जाना जाता है, भारत के महानतम तांत्रिकों, योगियों और सिद्ध महापुरुषों में से एक माने जाते हैं।
उनका जीवन भक्ति, तंत्र और माँ तारा के प्रति पूर्ण समर्पण का दिव्य उदाहरण है। नीचे उनके जीवन, साधना और चमत्कारों का विस्तार से वर्णन किया गया है
वामाखेपा का परिचय | Life of Bamakhepa
- पूरा नाम: वामाखेपा (कुछ स्थानों पर वामा क्षेत्रप)
- बामाखेपा के अन्य नाम: वामदेव,,वामराज,, वाम भैरव,, वामगुरु,,, वामक्षेत्र जन्मस्थान: तारापीठ के निकट, गांव अटला बिर्भूम जिला, पश्चिम बंगाल(भारत)
- जन्मकाल: लगभग 19वीं शताब्दी (सन् 1837 के आस-पास)
- बामाखेपा के गुरु: ब्रह्मानंद परमहंस, अघोराचार्य कपाली बाबा कामराज,,कौलचार कैलासा पति,, अंतिम गुरु वेदांत गुरु मोक्षानंद
- बामाखेपा के शिष्य: योगानंद, निगमानंद,बबलूखेपा,,ताराखेपा बसंतराज,, ईत्यादि बहुत से शिष्य हुए हैं
- आराध्य देवी: माँ तारा (तारापीठ की अधिष्ठात्री देवी)*
- मृत्यु (महासमाधि): लगभग सन् 1911
वामाखेपा का अर्थ
वामा’ का अर्थ होता है वाम मार्ग का साधक — यानी तंत्र के उस पथ का अनुसरण करने वाला जहाँ “अघोर” तत्व,वाम मतलब कापालिक वामाचार पुजा पद्धति जो पंच मकार से की जाती है यंत्र-मंत्र और शक्ति की उपासना मुख्य होती हैं
खेपा’ बंगाली शब्द है, जिसका अर्थ है पागल, लेकिन यहाँ ‘पागल’ का अर्थ है — दैवी प्रेम और तांत्रिक उन्माद से पूर्ण व्यक्ति
इस प्रकार वामाखेपा का अर्थ हुआ — “माँ तारा के प्रेम में उन्मत्त साधक”
प्रारंभिक जीवन
वामा का जन्म एक साधारण ब्राह्मण परिवार में हुआ था बचपन से ही उनमें वैराग्य, भक्ति और अलौकिक झुकाव था
कहा जाता है कि वे स्कूल या खेल-कूदमेंमननहींलगातेथेबल्कि नदी किनारे बैठकर “जय तारा माँ” का जप किया करते थे
उनके इस व्यवहार को देखकर लोग उन्हें “खेपा” (पागल) कहने लगे गुरु शिष्य परंपरा उनकी तांत्रिक यात्रा की शुरुआत तब हुई।
जब उन्हें महान सिद्ध योगी ब्रह्मानंद परमहंस का सान्निध्य प्राप्त हुआ गुरु ने उन्हें तारा उपासना का रहस्य बताया और तारापीठ श्मशान में साधना करने का आदेश दिया। बामाखेपा के महगुरु बाबा कामराज है और गुरु कैलासपति है अंतिम गुरु मोक्षानंद हुए हैं वामाखेपा ने वर्षों तक श्मशान में ध्यान किया, भस्म धारण की, और माँ तारा को साक्षात अनुभव किया। साधना के दौरान उन्होंने शरीर की सीमाओं को पार किया —
कई दिनों तक बिना भोजन-पानी के समाधि में रहते थे। श्मशान साधना और सिद्धियाँ वामा का अधिकांश जीवन तारापीठ श्मशान में बीता वहीं वे माँ तारा की मूर्ति से बात करते, प्रसाद ग्रहण करते, और भूत-प्रेतों से संवाद करते थे। कहते हैं कि वे जब तारा माँ के मंदिर में भोग लगाते थे तो माँ तारा स्वयं प्रसाद ग्रहण करती थीं और प्रसाद का कुछ अंश अदृश्य रूप से कम हो जाता था कई भक्तों ने यह दिव्य दृश्य देखा था।
तंत्र साधना
वामाखेपा Bamakhepa ने तंत्र के सभी प्रमुख अंगों की साधना की
- कौल साधना
- काली साधना
- तारा साधना
- श्मशान साधना
- अघोर साधना
- भैरव साधना
- भैरवी साधना
- शैव साधना
- कापालिक साधना
वामाखेपा के चमत्कार
- कहा जाता है कि वे अपने शिष्यों और भक्तों की बीमारी केवल “राख” लगाकर दूर कर देते थे।
- माँ तारा उनसे सीधे संवाद करती थीं।
- वे साधारण भिक्षुक के समान रहते, परंतु कोई भी राजा या अमीर उनके दर्शन के लिए आता तो उसके मन के प्रश्नों का उत्तर वामा पहले ही दे देते थे।
- उन्होंने कई बार “मृत शरीर में प्राण संचरण” जैसी सिद्धियाँ भी प्रकट कीं।
माँ तारा के प्रति भक्ति
वामा का जीवन माँ तारा के प्रेम में समर्पित था। वे कहते थे तारा ही सत्य है, तारा ही मेरा जीवन है। यदि तारा न मिले, तो यह शरीर व्यर्थ है।” वामा नंगे बदन रहते, शरीर पर केवल भस्म लगाते, और तारा की प्रतिमा के सामने बैठकर कभी रोते, कभी हँसते क्योंकि वे दैवी प्रेम की अवस्था में रहते थे।
वामाखेपा की आध्यात्मिक शिक्षा
- भक्ति बिना तंत्र अधूरा है
- साधना में निष्ठा और पवित्रता आवश्यक है
- माँ (शक्ति) की कृपा से सब कुछ संभव है
- श्मशान भय का स्थान नहीं, मुक्ति का द्वार है।
महासमाधि
वामाखेपा Bamakhepa ने अपने जीवन के अंतिम समय में स्वयं भविष्यवाणी की कि “अब माँ बुला रही हैं” सन् 1911 के आस-पास उन्होंने तारापीठ में ही महासमाधि ली। आज भी उनकी समाधि और साधनास्थली तारापीठ मंदिर के समीप स्थित है, जहाँ हजारों भक्त दर्शन हेतु आते हैं।