माँ काली की उत्पत्ति और जीभ बाहर होने का रहस्य | Origin of Maa Kali

माँ काली की उत्पत्ति | Origin of Ma Kali

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एक बार दारुक नाम के असुर ने ब्रह्मा को प्रसन्न किया. उनके द्वारा दिए गए वरदान से वह देवो और ब्राह्मणो को प्रलय की अग्नि के समान दुःख देने लगा. उसने सभी धर्मिक अनुष्ठान बंद करा दिए तथा स्वर्गलोक में अपना राज्य स्थापित कर लिया. सभी देवता, ब्रह्मा और विष्णु के धाम पहुंचे. ब्रह्मा जी ने बताया की यह दुष्ट केवल स्त्री दवारा मारा जायेगा. तब ब्रह्मा , विष्णु सहित सभी देव स्त्री रूप धर दुष्ट दारुक से लड़ने गए. परतु वह दैत्य अत्यंत बलशाली था, उसने उन सभी को परास्त कर भगा दिया.

ब्रह्मा, विष्णु समेत सभी देव भगवान शिव के धाम कैलाश पर्वत पहुंचे तथा उन्हें दैत्य दारुक के विषय में बताया. भगवान शिव ने उनकी बात सुन माँ पर्वती की ओर देखा और कहा हे कल्याणी जगत के हित के लिए व दुष्ट दारुक के वध के लिए में तुमसे प्रार्थना करता हूँ यह सुन माँ पर्वती मुस्कराई और अपने एक अंश को भगवान शिव में प्रेवश कराया. जिसे माँ भगवती के माया से इन्द्र आदि देवता और ब्रह्मा नही देख पाये उन्होंने देवी को शिव के पास पूर्ववत बैठे देखा |

Maa Kali Utpatti

माँ भगवती का वह अंश भगवान शिव के शरीर में प्रवेश कर उनके कंठ में स्थित विष से अपना आकार धारण करने लगा. विष के प्रभाव से वह काले वर्ण में परिवर्तित हुआ. भगवान शिव ने उस अंश को अपने भीतर महसूस कर अपना तीसरा नेत्र खोला. उनके नेत्र द्वारा भयंकर-विकराल रूपी व काली वर्ण वाली माँ काली उत्तपन हुई. माँ काली के लालट में तीसरा नेत्र तथा चन्द्र रेखा थी. कंठ में कराल विष का चिन्ह था और हाथ में त्रिशूल व नाना प्रकार के आभूषण व वस्त्रो से वह सुशोभित थी. माँ काली के भयंकर व विशाल रूप को देख देवता व सिद्ध लोग भागने लगे |
माँ काली के केवल हुंकार मात्र से दारुक समेत, सभी असुर सेना जल कर भस्म हो गयी. माँ के क्रोध की ज्वाला से सम्पूर्ण लोक जलने लगा. उनके क्रोध से संसार को जलते देख भगवान शिव ने एक बालक का रूप धारण किया. शिव श्मशान में पहुंचे और वहाँ लेट कर रोने लगे. जब माँ काली ने शिवरूपी उस बालक को देखा तो वह उनके उस रूप से मोहित हो गयी. वातसल्य भाव से उन्होंने शिव को अपने हृदय से लगा लिया तथा अपने स्तनों से उन्हें दूध पिलाने लगी. भगवान शिव ने दूध के साथ ही उनके क्रोध का भी पान कर लिया.उसके उस क्रोध से आठ मूर्ति हुई जो क्षेत्रपाल कहलाई.

शिवजी द्वारा माँ काली का क्रोध पी जाने के कारण वह मूर्छित हो गई. देवी को होश में लाने के लिए शिवजी ने शिव तांडव किया. होश में आने पर माँ काली ने जब शिव को नृत्य करते देखा तो वे भी नाचने लगी जिस कारण उन्हें योगिनी कहा गया !

माँ काली की जीभ बाहर होने का रहस्य | Maa Kali Jeebh Bahar

हिंदू धर्म ग्रंथ की पौराणिक कथा के अनुसार रक्तबीज नामक असुर को वरदान था कि वह कभी नहीं मरेगा , बल्कि उसके खून की जितनी भी बूंदे धरती पर गिरेगी , उनसे अनेक रक्तबीज उत्पन्न होंगे , वरदान पाकर रक्तबीज ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा दी। रक्त बीज और देवताओं के मध्य युद्ध चल रहा था , उस युद्ध में देवताओं द्वारा रक्तबीज पर प्रहार करने से , उनके शरीर से खून धरती पर गिरने लगा। रक्तबीज असुर के शरीर से जहां-जहां खून गिरता गया , वहां – वहां सारे दैत्य पैदा हो गए। असुर रक्तबीज को ऐसे में हराना कठिन होता गया और वह देवताओं के लिए चुनौती बन गया।

रक्तबीज का वध

देवता भगवान शिव के पास पहुंचे और अपनी परेशानी बताते हुए , उनसे प्रार्थना करते हुए इसका उपाय पूछा , तब भगवान शिव ने मां पार्वती से रक्तबीज का संहार करने की विनती की। मां काली ने विकराल रूप धारण कर असुर रक्तबीज का संहार किया। संहार करने से पहले रक्तबीज घायल हो गया और उसके शरीर से खून जैसे ही धरती पर गिरने वाला ही था कि उसे काली मां ने उसी क्षण अपने खप्पर में एकत्रित कर लिया। मां काली ने जगत कल्याण के लिए उस रक्त को पी लिया।

इसके बाद मां काली के क्रोध ने विकराल रूप ले लिया , उनके क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव उनके चरणों में लेट गए , जैसे ही भगवान शिव के सीने पर , मां काली के चरण स्पर्श हुए तो उनको अपने क्रोध पर गिलानी हुई और भगवान शिव पर अपने पांव देख उन्होंने संकोचित मन से जीभ को बाहर निकाल लिया।

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