परकाया प्रवेश सिद्धि – Parkaya Pravesh Siddhi
परकाया प्रवेश सिद्धि | दूसरे के शरीर में प्रवेश करने की सिद्धि
आप सब ने यह तो सूना ही होगा कि भूत प्रेत, पिशाच, जिन्न आदि किसी के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं, व्यक्ति की आत्मा को दबाकर उसके शरीर पर अपना आधिपत्य जमा लेते हैं, अपनी मर्जी करते हैं और अपनी अतृप्त इच्छाएं उस व्यक्ति के शरीर के माध्यम से पूर्ण करते हैं| किन्तु क्या आप यह सोच सकते हैं कि कोई व्यक्ति खुद जिन्दा रहते हुए किसी दुसरे के शरीर में प्रवेश कर जाय या खुद का शरीर त्याग कर पूरे होशोहवास, याददास्त और अपनी सिद्धियों के साथ किसी नए शरीर में प्रवेश कर जाय | आप सोच भी नहीं सकते या हो सकता है आपको पता न हो | शायद आपको आश्चर्य लगे या आपको अतिशयोक्ति लगे किन्तु ऐसा भी होता है |
परकाया प्रवेश सिद्धि के उदाहरण
सिद्धि साधना जगत को जानने वाले इसे जानते हैं की ऐसा होता है | हम आपको कुछ उदाहरण भी दे देते हैं ताकि आपको विश्वास हो जाय की ऐसा होता है |
परकाया प्रवेश सिद्धि का पहला उदाहरण
पहला उदाहरण आदि शंकराचार्य जी का है | आदि शंकराचार्य से जब मानदं मिश्र जी की पत्नी ने शास्त्रार्थ किया तो उनसे कुछ ऐसे प्रश्न किये जिसका शंकराचार्य जी को अनुभव ही नहीं था, तब उन्होंने उस विदुषी से समय माँगा और एक राजा के शरीर में प्रवेश करके उन स्थितियों को समझा, जाना जिससे सम्बन्धित प्रश्न थे और 6 महीने बाद उन्होंने मंडन मिश्र जी की पत्नी को उत्तर दिया |
ध्यान से समझिये यहाँ आदि शंकराचार्य का मूल शरीर भी जीवित था और उनकी आत्मा राजा के शरीर में भी क्रियाशील थी | कितने आश्चर्य की बात थी किन्तु ऐसा ही था | मूल शरीर को संरक्षित रखते हुए दुसरे के शरीर में प्रवेश करके कार्य करने का यह शास्त्रों में लिखा हुआ उदाहरण है |
परकाया प्रवेश सिद्धि का दूसरा उदाहरण
दूसरा उदाहरण भी देते हैं, कर्नल फैरल एक अंग्रेज अधिकारी थे ब्रिटिश राज में भारत में जब भारत पर अंग्रेजी राज था | उन्होंने अपने जंगल प्रवास के दौरान एक जीर्ण शीर्ण साधू को देखा जो नदी किनारे गया और नदी में बहते हुए युवा के शरीर को किनारे झाड़ियों में खींच लाया | कुछ समय बाद युवा वहां से उठकर चला गया और जब फैरल झाड़ियों के पास पहुंचे तो साधू का शरीर वहां मृत पड़ा था | साधू ने अपना शरीर बदल लिया था | यह उदाहरण अनेक पुस्तकों में लिखा है | यहाँ साधू अपनी सिद्धि के साथ, अपनी आत्मा के साथ नए शरीर में प्रवेश कर गया और पुराने शरीर को त्याग गया | अब वह नए शरीर में फिर वर्षों वर्षों जीवित रहेगा | ऐसे अनेक उदाहरण हैं तंत्र शास्त्रों में योग ग्रंथों में |
न शक्तियों की कोई सीमाँ है न सिद्धियों की | हो सकता है हम जिन साधुओं सिद्धों महात्माओं की कहानी सुनते हैं वह आज भी किसी दुसरे के शरीर में नया शरीर प्राप्त कर क्रियाशील हों, वर्ना कोई जन्म से ही विलक्ष्ण हो जाता है तो कोई अचानक से बहुत बदल जाता है | कोई जन्म से सिद्धों जैसा होता है तो कोई अचानक से बहुत ग्यानी हो जाता है |
योग शास्त्र ओर तंत्र शास्त्र की विद्याएँ
योग शास्त्र में और तंत्र शास्त्र में ऐसी अनेक विद्याएँ हैं जिनके द्वारा शरीर बदलने की क्षमता आ सकती है | हम आप यह भगी सुनते हैं की कोई सिद्ध महात्मा हजारों सालों से जीवित है | हम सभी यह भी सुनते हैं की दलाई लामा बुद्ध के अवतार होते हैं | कोई साधू हमें ऐसे स्थानों पर सुनने को मिल जाता है जहाँ मनुष्य का जीवित रहना भी मुश्किल होता है तो कभी कहीं कोई समाधि खुदाई में मिल जाती है जिसमे कोई साधू समाधिस्थ मिल जाता है जो सैकड़ों वर्षों से समाधि लिए होता है | हो सकता है कई सौ साल तक जीने वाले तेलंग स्वामी, बाबा कीनाराम, देवरहा बाबा, बामाखेपा, आदि शंकराचार्य, गुरु गोरखनाथ आदि आज भी किसी अन्य रूप में विचरण कर रहे हों क्योंकि ऐसी सिद्धियाँ तो होती ही हैं की शरीर बदला जा सके |
परकाया प्रवेश सिद्धि कैसे मिलती है ?
खुद के शरीर को जीर्ण शीर्ण पाकर किसी युवा के या बच्चे के मृत शरीर में प्रवेश कर अपना शरीर बदल लेना और अपना शरीर छोड़ देना अथवा अपने शरीर को जीवित तथा सुरक्षित रखते हुए दुसरे के शरीर में प्रवेश कर उसका जीवन कुछ समय जी लेना आसान सिद्धियाँ नहीं हैं | इस शक्ति की सिद्धि किसी छोटी साधना से, छुद्र सिद्धियों से, छुद्र शक्तियों से तो सम्भव ही नहीं है |
माध्यम प्रकार की शक्तियों जैसे डाकिनी, बेताल, योगिनी, यक्षिणी, अप्सरा, अंग देवता, सहायक देवता, सिद्ध विद्या आदि द्वारा भी सम्भव नहीं है | महाविद्याओं की सिद्धि भी इस तरह की शक्ति नहीं देती जब तक की उनका पूर्ण प्रत्यक्षीकरण न हो जाय और वह पूर्ण रूपेण शरीर से जुडकर पूर्ण कुंडलिनी जागरण न कर दें | इतनी क्षमता कि व्यक्ति शरीर बदल सके तभी आ सकती है जबकि व्यक्ति के नीचे के चार चक्र मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर और अनाहत पूर्ण रूप से जागृत हो जाय | इस शक्ति को परकाया प्रवेश शक्ति भी कहते हैं और परकाया प्रवेश की क्षमता तभी आती है जब अनाहत तक व्यक्ति की कुंडलिनी जाग्रत हो जाय अर्थात यह बहुत बड़ी सिद्धि है |
परकाया प्रवेश के लिए कुंडलिनी जागरण क्यों जरूरी है?
महाविद्याओं, त्रिदेवों, त्रिदेवियों, दुर्गा आदि मूल उच्चतम शक्तियां हैं जिनमे कुंडलिनी जागरण की भी क्षमता है और यह सीधे कुंडलिनी के किसी न किसी चक्र से भी जुड़े होते हैं अतः इनके साधक और कुंडलिनी साधक यह क्षमता पा सकते हैं की वह किसी अन्य के शरीर में प्रवेश कर सकें वह भी तब जब उन्हें इसकी तकनीक पता हो | अपने शरीर से निकलना इन साधकों के लिए भी आसान होता है पर दुसरे शरीर में प्रवेश करना अत्यंत कठिन क्रिया है जो कि शुद्ध पारलौकिक तकनिकी क्रिया है |
सूक्ष्म शरीर में विचरण करने वाला साधक तकनिकी दक्ष हो तो वह यह कार्य कर सकता है | महाविद्या, त्रिदेव, त्रिदेवी, दुर्गा आदि का साधक जब अपने ईष्ट को इतना सिद्ध कर ले कि उसका ईष्ट शरीर को पूर्ण संतृप्त कर दे, शरीर से जुड़ जाय ,मानसिक तरंगों के साथ क्रिया करने लगे | साधक ईष्टमय हो जाय तब पहले तो ईष्ट से सम्बन्धित कुंडलिनी का चक्र जाग्रत होता है और फिर धीरे धीरे पूर्ण कुंडलिनी जाग्रत हो सकता है |
अनाहत चक्र का महत्व
अनाहत के जागरण पर साधक परकाया प्रवेश की शक्ति पा सकता है और चाहे तो अपनी वृद्धावस्था आने पर अपना शरीर त्याग कम उम्र के मनुष्य में प्रवेश कर उसका शरीर प्राप्त कर सकता है | हां कर्म बोझ उस व्यक्ति के जरुर साथ जुड़ जायेंगे जिसका वह शरीर प्राप्त करेगा | अधिकतर इस स्थिति में पहुंचे साधक जिस शरीर का चुनाव करते हैं उसकी या तो आयु पूरी हो चुकी होती है या जो अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए होते हैं | इनमे बच्चे या युवा हो सकते हैं |
हिन्दू संस्कारों में कुछ रोगों 3से मृत्यु पाए हुए लोगों, बच्चों, सर्प दंस से मृत लोगों का जल प्रवाह किया जाता है, उन्हें जलाया नहीं जाता | साधुओं, सन्यासियों, गुरुओं को या तो समाधिस्थ किया जाता है या इन्हें भी प्रवाहित किया जाता है | ऐसा क्यों किया जाता है यह भी अनेक रहस्य समेटे होता है और इसके पीछे भी आध्यात्मिक विज्ञान होता है | पारलौकिक विज्ञान के रहस्यों की दुनिया इतनी बड़ी है की आप सोच भी नहीं सकते |