कर्ण पिशाचिनी साधना क्या है | Karna Pishachini

भारतीय तंत्र में भूत -भविष्य और वर्तमान का हाल सटीक बताने वाली शक्ति में कर्ण पिशाचिनी का नाम मुख्य रूप से लिया जाता है | कहा जाता है की इस पिशाचिनी को सिद्ध करने पर साधक किसी भी व्यक्ति का भूत, वर्तमान और भविष्य ठीक ठीक बता सकता है | यह पिशाचिनी स्वयं साधक के कर्ण (कान) या मष्तिष्क में सब डाल देती है | यह देवी योगमाया का ही एक अंश मानी गयी है |

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क्यों कर्ण पिशाचिनी सिद्धि नहीं करनी चाहिए ?

कर्ण पिशाचिनी का रूप एक तंदुरुस्त, सुडौल, सम्पूर्ण रूप से सांचे में ढली सर्वांग रूपसी की नग्नावृत्ति का है | इसकी सिद्धि कामभाव और रतिभाव से की जाती है अर्थात यह सुंदरी देवी, साधक के भोग -भाव से प्रसन्न होती है | भूत भविष्य और वर्तमान कथन की इस सिद्धि को करने वाले साधक का अंत अच्छा नहीं होता है ऐसा अधिकतर मामलों में देखा गया है क्योकि इसकी अधिकतर पद्धतियों अघोरात्म्क और अपवित्र सी होती हैं | इसके साधक का अन्तकाल घोर दारिद्य और दुखद दशा में होता है |
कहा जाता है की महान भविष्यवक्ता कीरो ने भारत आकर यह सिद्धि की थी और उसका अंतकाल इसी कारण अत्यंत दुखद रहा | यह वाम मार्गीय साधना आगे चलकर साधक का भविष्य नष्ट कर देती है और अंत में उसे दुर्गति और शारीरिक व्याधियों के साथ ही सामाजिक उपेक्षा का शिकार होना पड़ता है | कोई उसके पास भी नहीं जाना चाहता |कर्ण पिशाचिनी शरीर स्वस्थ रहने तक साथ होती है, उसके बाद यह साधक को अपने अनुसार संचालित करती है |

कर्ण पिशाचिनी सिद्धि के लाभ

कर्ण पिशाचिनी सिद्ध साधक किसी का चेहरा देखकर मन की बात सहित, घर परिवार की सारी बातें बता देते हैं, यहाँ तक की व्यक्तिगत जीवन के गूढ़ रहस्यों तक को बता कर लोगों को हैरान और चकित कर देते हैं | मन में सोचे प्रश्नों का कागज़ पर लिखकर उत्तर दे देते हैं | सामान्य बुद्धि से यह बहुत बड़ा रहस्य और चमत्कार सा प्रतीत होता है | यह सारी स्थिति लोगों को चमत्कार सी लगती है |
जिन लोगों को कर्ण पिशाचिनी की सिद्धि प्राप्त हो जाती है उनके पास धन और प्रसिद्धि की कमी नहीं रहती है, लेकिन फिर भी इनके जीवन में सिद्धि के कारण कई कष्ट उत्पन्न हो जाते हैं और इनका जीवन सुखी नहीं रहता है | पिशाच प्रकृति की सिद्धि के प्रभाव के कारण ये स्वयं भी पिशाच बुद्धि, स्वभाव और चरित्र के हो जाते हैं | कई दिनों तक स्नान नहीं करते, बढ़ चढ़कर बोलने और झूठ बोलने तक की आदत पड़ जाती है | दिखावे को यह भले ही साफ़ सुथरे कपडे पहनकर, इत्र आदि लगाकर रहें पर इनके मन और शरीर की निर्मलता समाप्त हो जाती है | ये भक्ष्य -अभक्ष्य का भेद त्यागकर, मांस मदिरा में लिप्त हो जाते हैं |

तंत्र शास्त्र में कर्ण पिशाचिनी सिद्धि

तंत्र शास्त्र में इस सिद्धि को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता | तंत्र के अनुसार यह साधारण और निम्न कोटि की सिद्धि है | यह अधिकतर अघोरियों, ग्रामीण साधको, भौतिक लिप्सा में युक्त साधकों द्वारा की जाने वाली सिद्धि है, जिसको करने पर उच्च देवी देवताओं की साधना तो दूर इस शक्ति के प्रभाव से निकलना भी मुश्किल हो जाता है और मोक्ष -मुक्ति कभी नहीं हो पाती | व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी आत्मा भी पिशाच लोक के अधीन हो जाती है |
कर्ण पिशाचिनी के साधक को अपनी मुक्ति के लिए फिर कभी किसी अन्य उच्च शक्ति के साधक की सहायत लेनी होती है | इसके साधक की एकदम मुक्ति ही न हो ऐसा नहीं है किन्तु फिर या तो वह किसी की सहायता ले या सात्विक साधनाएं करे | कर्ण पिशाचिनी की कुछ साधनाएं सात्विक भी हैं जबकि मूल साधनाएँ वाम मार्गीय हैं |
वाम मार्गीय या अघोर क्रिया वाले साधनाओं में मल या मूत्र की भिगाई रुई कान में लगातें हैं, जबकि सात्विक क्रिया वाले अभिमंत्रित भस्म और केसर का लेप कान में लगाते हैं | सात्विक साधनाओं में समय अधिक लगता है और शक्ति भी देर से आती है, चूंकि मूल स्वरुप और साधना परिकल्पना वाम मार्गीय रह है |
कर्ण पिशाचिनी की साधना में मूर्ती और यन्त्र का उपयोग किया जाता है | इसका कोई चित्र उपलब्ध नहीं होता अतः चित्र नहीं रखा जाता | मूर्ती स्वयं निर्मित की जाती है, यद्यपि यह आवश्यक नहीं और हर पद्धति में अलग अलग प्रक्रिया अपनाई जाती है |

क्यों इसे कर्ण पिशाचिनी नाम दिया गया ?

इस शक्ति को पिशाचिनी का नाम दिया गया है, क्योकि यह एक अति तामसी शक्ति है | इसे कर्ण के विशेषण से युक्त इसलिए किया गया है की साधक मन में जब कोई प्रश्न करता है तो उसके मन में ही उत्तर प्राप्त होता है, किन्तु उसे अनुभूत होता है की यह शक्ति उसके कान में फुसफुसा रही है | इसलिए इसे कर्ण पिशाचिनी कहा जाता है |

कर्ण पिशाचिनी भूत काल और वर्तमान की बात पूरी तरह सही सही बताती है | आय के स्रोत में वृद्धि कर सकती है, परन्तु भविष्य का कथन इसके द्वारा हमेशा सही नहीं होता, क्योकि इसकी गति भविष्य में नहीं है | भविष्य कथन साधक का अनुमान या ज्योतिष ज्ञान होता है | यह किसी विशेष शक्ति के साधक का भूत काल भी सही नहीं बता पाती |
आप दुर्गा सप्तशती में से कवच का पाठ करने के बाद अपनी जेब में किसी वस्तु को रखें और पुनः कवच का पाठ करके पिशाची साधक के पास जाएँ तो वह उस वस्तु के बारे में सही नहीं बता पायेगा | पिशाची विशिष्ट साधक के सामने पूर्ण रूप से न आने के कारण केवल अपने साधक को दूर से ही वार्ता संकेत देती है | उसे पूर्ण रूप से समझने में अक्षम होने के कारण उसका फलित गलत हो जाता है |

सिद्धि के समय ये कैसे आती है ?

साधक के सामने सिद्धि के समय यह एक साधारण श्याम वर्ण की युवती के रूप में प्रकट होती है |इसकी मुखाकृति तेजस्वी लगती है और यह अलंकार रहित होती है | शरीर पर कोई आभूषण नहीं होता है, मस्तक में एक देदीप्यमान प्रकाश किरने छोड़ता हुआ आड़ा नेत्र होता है | इसकी ओर देख पाना संभव नहीं होता है | ललाट में यह देदीप्यमान आड़ा नेत्र ही कर्ण पिशाचिनी की पहचान है |
इसके पीछे मृत आत्माओं की भीड़ होती है किन्तु यह सब साधक को भयभीत करने का प्रयास नहीं करते | प्रकट होने पर कर्ण पिशाचिनी साधक के मस्तक पर हाथ रखती है | यह समय ही साधक की कठिन परीक्षा का समय होता है | इस समय उसे भयभीत करने वाला कोई दृश्य तो नहीं दिखाई देता है किन्तु कर्ण पिशाचिनी का प्रथम स्पर्स ही भय से संज्ञा शून्य करने वाला तथा साधक को विचलित करने वाला होता है | उस समय साधक साहसपूर्वक इसके प्रश्न का उत्तर देकर इसे वशीभूत कर साथ रहने के लिए वचनबद्ध कर लेता है | यह स्थिति इसकी सिद्धि की द्योतक मानी जाती है |

निष्कर्ष

कर्ण पिशाचिनी मूलतः वाम मार्ग की शक्ति है, जो अधिकतर सिद्धों नाथों द्वारा सिद्ध की जाती है |इसकी परिकल्पना भी नाथ पंथ से प्रेरित है | यह एक तामसी शक्ति है, इसकी सिद्धि भी इसी प्रकार करनी चाहिए | इसमें किसी पवित्र या सौम्य भाव की छाया पड़ते ही यह गायब हो जाती है | यह पवित्र भाव, पवित्र स्थान, साफ़ सुथरे वातावरण में सिद्ध नहीं होती | मंदिर ,पूजा -स्थल, नदी का मनोरम किनारा, सुगन्धित फूलों का बाग़, स्वच्छ स्थान पर इसे सिद्ध नहीं किया जा सकता | यह विद्या शक्ति उपासक या दुर्गा पाठी को आसानी से सिद्ध नहीं होती |
कई कर्ण पिशाचिनी वर मांगती हैं की मुझे तुम किस रूप में चाहते हो – माँ, पुत्री,बहन, स्त्री या प्रेमिका |आप इसमें से जिस रूप को स्वीकार करोगे, उस स्त्री की परिवार में हानि हो जायेगी | यदि माँ रूप में माना तो माँ की हानि हो जायेगी | कभी कभी यह विशेष लावण्य रूप को ग्रहण करती है, अतः माँ -बहन रूप में मानते मानते पत्नी भाव को प्राप्त करने की इच्छा होने लगती है | ऐसी स्थिति में साधक का पतन हो जाता है | बहन रूप में मानते मानते पत्नी रूप मानने पर गृहस्थ से नाता टूट जाता है | पत्नी को कष्ट होता है और साधक तथा उसकी पत्नी साथ नहीं रह पाते |
अतः कर्ण पिशाचिनी की साधना बहुत सोच समझकर ही करनी चाहिए | इस प्रकार की किसी साधना को कमजोर ह्रदय वालों को नहीं करना चाहिए क्योकि साधना अवधि में पिशाचिनी भयात्म्क वातावरण भी उत्पन्न करती है और किसी गलती पर भारी विपत्ति और कष्ट भी उत्पन्न करती है |

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