महाविद्या तारा माँ कौन है | Mahavidhya Tara Mata

महाविद्या तारा माँ कौन है?

Advertisement

महाविद्या तारा

मां तारा दस महाविद्याओं में से एक हैं। जब चारों ओर निराशा ही व्याप्त हो तथा विपत्ति में कोई राह न दिखे तब मां भगवती तारा के रूप में उपस्थित होती हैं तथा भक्त को विपत्ति से मुक्त करती हैं। देवी तारा को सूर्य प्रलय की अघिष्ठात्री देवी का उग्र रुप माना जाता है।
तांत्रिक साधको के लिए माँ तारा की उपासना सर्वसिद्धिकारक माना जाता है। मां तारा के प्रमुख तीन रूप है क्रमशः उग्रतारा, एकाजटा, नील सरस्वती देवी हैं। इन्हें महातारा के नाम से भी पूजा जाता है।

देवी तारा शत्रुओं का नाश करने वाली सौंदर्य और रूप ऐश्वर्य की देवी हैं। जब इस दुनिया में कुछ भी नहीं था तब अंधकार रूपी ब्रह्मांड में सिर्फ देवी काली थीं। इस अंधकार से एक प्रकाश की किरण उत्पन्न हुई जो माता तारा कहलाईं। मां तारा को नील तारा भी कहा जाता है।

महाविद्या तारा की उत्पत्ति

पौराणिक कथाओं के अनुसार जब सागर मंथन हो रहा था तो सागर से अनेक वस्तुएं निकल रही थी परन्तु जब विष निकला तब तीनो लोक संकट में पड़ गए। इसके बाद देव-दानवो तथा ऋषि-मुनियो ने भगवान रूद्र से रक्षा की प्रार्थना की।

शिव जी ने विष को पी लिया और अपने कंठ में धारण कर लिया। भगवान शिव जी का कंठ विष के कारण नीला हो गया। माता पार्वती ने भगवान शिव के अंदर समाहित होकर विष को अपने प्रभाव से हीन कर देती है परन्तु विष के प्रभाव से माता का शरीर भी नीला पड़ जाता है। इस कारण मां नीलतारा के नाम से भी जानी जाती है।

माँ तारा और माँ काली

सृष्टि की उत्तपत्ति से पहले घोर अन्धकार था, तब न तो कोई तत्व था न ही कोई शक्ति थी, केवल एक अन्धकार का साम्राज्य था, इस परलायाकाल के अन्धकार की देवी थी काली, उसी महाअधकार से एक प्रकाश का बिन्दु प्रकट हुआ जिसे तारा कहा गया, यही तारा अक्षोभ्य नाम के ऋषि पुरुष की शक्ति है, ब्रहमांड में जितने धधकते पिंड हैं सभी की स्वामिनी उत्तपत्तिकर्त्री तारा ही हैं, जो सूर्य में प्रखर प्रकाश है उसे नीलग्रीव कहा जाता है|
यही नील ग्रीवा माँ तारा हैं, सृष्टि उत्तपत्ति के समय प्रकाश के रूप में प्राकट्य हुआ इस लिए तारा नाम से विख्यात हुई किन्तु देवी तारा को महानीला या नील तारा कहा जाता है क्योंकि उनका रंग नीला है, जिसके सम्बन्ध में कथा आती है कि जब सागर मंथन हुआ तो सागर से हलाहल विष निकला, जो तीनों लोकों को नष्ट करने लगा, तब समस्त राक्षसों देवताओं ऋषि मुनिओं नें भगवान शिव से रक्षा की गुहार लगाई, भूत बावन शिव भोले नें सागर म,अन्थान से निकले कालकूट नामक विष को पी लिया।
विष पीते ही विष के प्रभाव से महादेव मूर्छित होने लगे, उनहोंने विष को कंठ में रोक लिया किन्तु विष के प्रभाव से उनका कंठ भी नीला हो गया, जब देवी नें भगवान् को मूर्छित होते देख तो देवी नासिका से भगवान शिव के भीतर चली गयी और विष को अपने दूध से प्रभावहीन कर दिया,
किन्तु हलाहल विष से देवी का शरीर नीला पड़ गया, तब भगवान शिव नें देवी को महानीला कह कर संबोधित किया, इस प्रकार सृष्टि उत्तपत्ति के बाद पहली बार देवी साकार रूप में प्रकट हुई|

तारा देवी के रूप

दस महविद्याओ में देवी तारा की साधना पूजा ही सबसे जटिल है, देवी के तीन प्रमुख रूप हैं

  1. उग्रतारा
  2. एकाजटा
  3. नील सरस्वती

देवी सकल ब्रह्म अर्थात परमेश्वर की शक्ति है, देवी की प्रमुख सात कलाएं हैं जिनसे देवी ब्रहमांड सहित जीवों तथा देवताओं की रक्षा भी करती है ये सात शक्तियां हैं

  1. परा
  2. परात्परा
  3. अतीता
  4. चित्परा
  5. तत्परा
  6. तदतीता
  7. सर्वातीता

इन कलाओं सहित देवी का धन करने या स्मरण करने से उपासक को अनेकों विद्याओं का ज्ञान सहज ही प्राप्त होने लगता है,

देवी तारा के भक्त की सिद्धि

देवी तारा के भक्त के बुद्धिबल का मुकाबला तीनों लोकों मन कोई नहीं कर सकता, भोग और मोक्ष एक साथ देने में समर्थ होने के कारण इनको सिद्धविद्या कहा गया है |
मां तारा ही अनेकों सरस्वतियों की जननी है इस लिए उनको नील सरस्वती कहा जाता हैदेवी का भक्त प्रखरतम बुद्धिमान हो जाता है जिस कारण वो संसार और सृष्टि को समझ जाता है अक्षर के भीतर का ज्ञान ही तारा विद्या है भवसागर से तारने वाली होने के कारण भी देवी को तारा कहा जाता है

देवी तारा के आभूषण

देवी बाघम्बर के वस्त्र धारण करती है और नागों का हार एवं कंकन धरे हुये हैदेवी का स्वयं का रंग नीला है और नीले रंग को प्रधान रख कर ही देवी की पूजा होती है देवी तारा के तीन रूपों में से किसी भी रूप की साधना बना सकती है
समृद्ध, महाबलशाली और ज्ञानवानसृष्टि की उतपाती एवं प्रकाशित शक्ति के रूप में देवी को त्रिलोकी पूजती हैये सारी सृष्टि देवी की कृपा से ही अनेक सूर्यों का प्रकाश प्राप्त कर रही है शास्त्रों में देवी को ही सवित्राग्नी कहा गया है देवी की स्तुति से देवी की कृपा प्राप्त होती है |

Leave a Comment