भगवान शिव का शरभ अवतार | God Shiv Sharabha Avatar
भगवान शिव का शरभ अवतार
भगवान शिव भोलेनाथ हैं वह छलकपट से एकदम दूर सृष्टि के सृजनकर्ता हैं। भगवान शिव बहुत ही रहस्यमयी हैं वैसे ही शिव का वेशभूषा भी रहस्मयी है। शिव ने गले में नाग, मुंडमालाएं धारण की हुई हैं। इनके शीर्ष पर चंद्रमा और केशों में गंगा है इन सभी के पीछे कुछ न कुछ रहस्य है इसी तरह शिव वैसे तो शरीर पर भस्म धारण करते हैं लेकिन शिव बाघ की खाल भी धारण किए हुए हैं।
नरसिंह जी द्वारा हिरण्यकश्यप का वध
ब्रह्मा ने हिरण्यकश्यप को वरदान दिया कि वह किसी भी देवता, मानव, पशु, पक्षी द्वारा नहीं मारा जाएगा। उसे नंगे हाथों, हथियारों से नहीं मारा जाएगा। वह दिन के समय, रात के समय, अपने घर के अंदर, अपने घर के बाहर, पृथ्वी पर या आकाश में नहीं मारा जाएगा।
हिरण्यकश्यप को मिले वरदान के चलते स्वयं विष्णु भगवान ने उसके संहार के लिए नृसिंह अवतार धारण किया था। नरसिंह ने हिरण्यकश्यप का वध करते समय उससे कहा – “मैं न तो मानव हूँ और न ही पशु, मैं आधा मानव और आधा पशु हूँ। तुम न तो अपने घर के बाहर हो और न ही अंदर, तुम दहलीज (अपने घर के प्रवेश द्वार) पर हो, तुम न तो धरती पर हो और न ही आकाश में, बल्कि मेरी गोद में हो, तुम न तो किसी हथियार से और न ही नंगे हाथों से बल्कि मेरे नाखूनों से मारे जाओगे।”
हिरण्यकश्यप का वध तो हो गया लेकिन नारायण का क्रोध इतना प्रचंड था कि उनके क्रोध से समस्त जगत भयभीत हो गया और सभी देवी- देवता तक कांपने लगे थे। तब समस्त देवगण शिव की शरण में पहुंचे और नृसिंह भगवान को शांत करने का आग्रह किया। तब नृसिंह भगवान का गुस्सा शांत करने के लिए शिव जी वीर भद्र को विष्णु जी के नरसिंह अवतार के पास भेजा लेकिन नरसिंह अवतार का गुस्सा और ज्यादा बढ़ गया |
शिव का शरभ अवतार
तब नृसिंह भगवान का गुस्सा शांत करने के लिए शिव ने शरभ अवतार धारण किया। भगवान शंकर का छठा अवतार है शरभ अवतार। लिंगपुराण में भी शिव के शरभ अवतार की कथा है। शरभ अवतार के बारे में मान्यता है कि यह एक ऐसा प्राणी था जो सिंह से भी बलशाली था व जिसके आठ पैर होते थे। शिव इस अवतार में गरूड़, सिंह और मनुष्य का मिश्रित रूप धारण करके प्रकट हुए और शरभ कहलाए।
शरभ अवतार ने किया भगवान नृसिंह को शांत
शिव भगवान इसी रूप में भगवान नृसिंह के पास पहुंचे तथा उनसे आग्रह किया लेकिन नृसिंह भगवान की क्रोधाग्नि शांत नहीं हुई। यह देखकर शरभ रूपी भगवान शिव अपनी पूंछ में नृसिंह को लपेटकर ले उड़े। शरभ नृसिंह भगवान पर चोंच से वार करने लगा। शरभ के वार से आहत होकर नृसिंह ने अपना शरीर त्यागने का निर्णय लिया तब कहीं जाकर भगवान नृसिंह की क्रोधाग्नि शांत हुई।
नृसिंह भगवान ने शिव के शरभ अवतार से क्षमा याचना कर अति विनम्र भाव से उनकी स्तुति की और शिव से निवेदन किया कि इनके चर्म को शिव अपने आसन के रूप में स्वीकार करें। इसके बाद नृसिंह भगवान विष्णु के तेज में मिल गए और शिव ने इनके चर्म को अपना आसन बना लिया। इसलिए ही शिव अपने शरीर पर इसी खाल को धारण किए हुए हैं। इस प्रकार भगवान शिव ने शरभ अवतार धारण कर भगवान नृसिंह की क्रोधाग्नि से सृष्टि की रक्षा की।