कैसे बने गणेश जी प्रथम पूज्य देवता (How Ganesh Ji became the first venerable deity)
कैसे बने गणेश जी प्रथम पूज्य देवता (How Ganesh Ji became the first venerable deity)
हिन्दू धर्म की मान्यतओं के अनुसार यदि हम लोग कोई भी शुभ कार्य करते हैं तो हम सबसे श्री गणेश (Ganesh) जी का पूजन करते हैं उसके बाद ही कोई शुभ कार्य करना प्रारंभ करते हैं यदि किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले हम लोग गणेश (Ganesh) जी का पूजन नहीं करते है तो वो शुभ कार्य संपन्न नहीं माना जाता है ऐसा इसलिए है क्योंकि गणेश (Ganesh) जी की हमारे त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश तथा अन्य देवी देवताओं से वरदान प्राप्त हुआ था कि कोई भी शुभ कार्य करने से पहले यदि गणेश (Ganesh) पूजन नहीं होगा तो वह शुभ कार्य पूर्ण नहीं माना जाएगा।
यह मान्यता कई युगों से चलती आ रही हैं जिस कारण हिन्दू धर्म में सर्वप्रथम गणेश (Ganesh) पूजन करके कोई भी शुभ कार्य की शुरुआत होती हैं।
तो आज हम आपको बताएंगे कि आखिर कैसे बने गणेश (Ganesh) जी प्रथम पूज्य देवता।
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शिव पुराण की कथा के अनुसार शिवजी और माता पार्वती के प्रथम पुत्र कार्तिकेय थे लेकिन उनके जन्म के बाद से ही राक्षसो का अंत करने के लिए शिवजी ने अपने पुत्र कार्तिक को चुना जिस कारण कार्तिक को राक्षसो का अंत करने के लिए कैलाश और अपने माता पिता छोड़ना पड़ा जिसके कारण शिवजी और माता पार्वती कैलाश पर अकेले रह गए शिवजी भी अक्सर अपने ध्यान में लीन रहते थे और ध्यान में लीन होने के कारण उन्होंने कैलाश को भी छोड़ दिया था जिस कारण माता पार्वती बिल्कुल अकेली रह गई।
पार्वती जी के भाई विष्णु जी से अपनी बहन पार्वती कि ययह वेदना देखी नहीं गई और माता पार्वती से भेंट कर भगवान विष्णु जी ने उन्हें सुझाव दिया उसके बाद माता पार्वती जी ने अपने शरीर से उत्पन्न मैल से एक मूर्ति का निर्माण किया और अपनी शक्ति से उस मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा किया जिससे भगवान गणेश (Ganesh) जी का जन्म हुआ लेकिन भगवान शिव जी इस बात से बिल्कुल अनजान थे कि गणेश (Ganesh) उनका पुत्र हैं एक दिन जब शिवजी अपनी तपस्या पूर्ण कर कैलाश वापस आए तो वह माता पार्वती से मिलने के लिए उनके पास जा रहे थे लेकिन तभी उनको गणेश (Ganesh) जी ने माता पार्वती के आदेशानुसार शिव जी को अपनी माता पार्वती से नहीं मिलने दिया और शिवजी के बार बार गणेश (Ganesh) जी से अनुरोध करने के पश्चात भी गणेश (Ganesh) जी ने माता पार्वती आज्ञा का पालन करते रहे और गणेश (Ganesh) जी ने शिवजी अर्थात अपने पिता को युद्ध की चुनौती दे दी जिस कारण शिवजी को अत्यंत क्रोध आ गया और उन्होंने गणेश (Ganesh) जी का सर अपने त्रिशूल से धड़ से अलग कर दिया माता पार्वती यह दृश्य देख कर शिवजी से अत्यंत क्रोधित हो गई और शिवजी से अपने पुत्र को फिर से जीवित करने को कहा तब शिवजी ने हथिनी के बच्चे का सर गणेश (Ganesh) जी को लगाया और उनको नया जीवनदान दिया।
एक बार सभी देवताओं में बहस हो गई की धरती लोक पर कौन से देवता सर्वप्रथम पूजनीय होंगे बहस इतनी ज्यादा बढ़ गई कि सभी देवताओं ने शिवजी के पास जाकर इस प्रश्न का उत्तर जानना चाहा तब शिवजी ने एक प्रतियोगिता आयोजित की सभी देव अपने अपने वाहनों से ब्रह्माण्ड के सात चक्कर लगाएंगे जो भी देव सबसे पहले यह चक्कर लगाकर कैलाश वापस आएगा उसी देव की धरती लोक पर सबसे पहले पूजा होगी सभी देवता अपने अपने वाहन पर सवार होकर ब्रह्माण्ड के सात चक्कर पूर्ण करने के लिए चले गए लेकिन गणेश (Ganesh) जी वहीं अपने माता पार्वती और पिता महादेव के समक्ष खड़े रहे और अपने माता पिता के सात चक्कर लगाकर उनके सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गए।
देवों ने कैलाश वापस आकर जब गणेश (Ganesh) जी को शिवजी के समक्ष खड़ा देख सब अचंभित हो गए तब शिवजी ने कहा कि माता पिता को समस्त ब्रह्माण्ड और समस्त सृष्टि में सर्वोच्च स्थान दिया गया है और गणेश (Ganesh) पुत्र ने उसी का पालन कर ब्रह्माण्ड के सात चक्कर पूर्ण किये शिवजी कि इस बात से सभी देवी देवता सहमत हो गए और गणेश (Ganesh) जी को धरती लोक पर सर्वप्रथम पूजनीय देव का स्थान प्राप्त हो गया।
दोस्तों कमेंट में जरूर बताएगा की आपको यह कथा कैसी लगी।