क्यों दिया सीता जी ने नदी, गाय, पंडित, तुलसी और कौवे को श्राप (Why did Sita curse River, Cow, Pandit and Crows)

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क्यों दिया सीता जी ने नदी, गाय, पंडित, और कौवे को श्राप (Why did Sita curse River, Cow, Pandit and Crows)

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जब श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण जी महाराज दशरथ के द्वारा दिया गया 14 वर्ष का वनवास काट रहे थे तब श्री राम और लक्ष्मण जी के पिता राजा दशरथ की मृत्यु हो चुकी थी उसी दौरान पितृ पछ चल रहा था और श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण जी को पिंडदान करना था जो किसी पवित्र नदी के किनारे होता है इसलिए श्री राम, माता सीता और लक्ष्मण जी गया की फल्गु नदी के किनारे पहुंचे| जब श्री राम, देवी सीता और लक्ष्मण जी फल्गु नदी के किनारे पहुंचे तब श्री राम ने पंडित जी से पूजा की साम्रगी के बारे में पूछा और श्री राम ने लक्ष्मण जी को पास के गॉव में जाकर पूजा की जरुरी साम्रगी लाने को बोला| जब काफी समय तक लक्ष्मण जी नहीं लौटे और पंडित जी के बार बार कहने पर कि पूजा का शुभ महूर्त निकलता जा रहा है तब खुद श्री राम ने जाकर लक्ष्मण जी का पता लगाने का निर्णय लिया और श्री राम जी भी वहाँ से लक्ष्मण जी का पता लगाने के लिए निकल गए|
धीरे धीरे शुभ महूर्त निकलता जा रहा था और सीता जी की चिंता भी बढ़ती जा रही थी क्योकि श्री राम और लक्ष्मण वापस नहीं लौटे थे तब देवी सीता ने यह निर्णय लिया कि उनके पास जो भी पूजा की साम्रगी है वह उनसे ही स्वयं पूजा करेंगी और पंडित जी से बोला की श्री राम और लक्ष्मण जी को लौटने में देर हो रही है इसलिए वह पूजा शुरू करे शायद तब तक श्री राम और लक्ष्मण वापस आ जाए और अगर श्री राम और लक्ष्मण जी नहीं आये तो वह अकेले ही यह पूजा समाप्त कर लेंगी|
विधिपूर्वक पूजा करने के बाद अन्त में देवी सीता ने पिंडदान किया और जैसे ही देवी सीता ने प्रार्थना करने के लिए अपने हाथ जुड़े और आखे बंद की उन्हें एक दिव्य स्वर सुनाई दिया कि उनकी पूजा सम्पन्न हुयी और स्वीकार भी हो गयी है ऐसा सुनकर देवी सीता को बहुत प्रसन्ता हुयी क्योकि उनकी पूजा सफल हो गयी थी और राजा दशरथ ने उनकी पूजा को स्वीकार भी कर लिया था|

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क्यों दिया सीता जी ने नदी, गाय, पंडित, तुलसी और कौवे को श्राप (Why did Sita curse River, Cow, Pandit and Crows)
क्यों दिया सीता जी ने नदी, गाय, पंडित, तुलसी और कौवे को श्राप (Why did Sita curse River, Cow, Pandit and Crows)

देवी सीता इस बात को अच्छी तरह से जानती थी कि श्री राम और लक्ष्मण जी इस बात पर विश्वास नहीं करेंगे क्योकि ऐसा माना जाता है की पिंडदान बिना पुत्रो के पूरा नहीं होती तब सीता जी ने फल्गु नदी, पूजा में इस्तेमाल होने वाली गाय, वट वृक्ष, कौऐ, तुलसी की पौधे और पंडित जी को इस बात का साक्षी बनने को कहा|
जब श्री राम और लक्ष्मण जी वापस आये तब माँ सीता ने श्री राम जी को सब बताया लेकिन जब श्री राम ने सीता जी की बात नहीं मानी तब सीता जी ने सभी साक्षीओ से अनुरोध किया की वह श्री राम जी को सारी सच्चाई बताये लेकिन श्री राम के क्रोध को देखकर किसी में भी सत्य कहने की हिम्मत नहीं हुई केवल वट वृक्ष ने ही हिम्मत करके श्री राम को सारी सच्चाई बतायी|
इस बात से देवी सीता बहुत क्रोधित हुई और उन्होंने सभी को श्राप दे दिया|

  1. सीता जी ने फल्गु नदी को श्राप दिया की वह सिर्फ नाम की नदी रहेगी और उसमे पानी नहीं रहेगा यही कारण है की आज भी यह नदी पानी न होने के कारण सुखी पड़ी है| 
  2.  फिर सीता जी ने गाय को श्राप दिया की उसके पूरे शरीर की पूजा नहीं की जायेगी और हिन्दू धर्म में उसके केवल पिछले हिस्से को ही पूजा जायेगा साथ ही सीता जी ने गाय को यहां वहाँ भटकने का भी श्राप दिया था| 
  3. सीता जी ने पंडित जी को कभी सन्तुष्ठ न रहने का श्राप दिया यही कारण है कि पंडित दान दक्षिणा के बाद भी कभी सन्तुष्ठ नहीं रहते है| 
  4. सीता जी ने तुलसी जी को श्राप दिया की वह गया की मिटटी में कभी नहीं उगेगी| 
  5. सीता जी ने कौए को हमेशा लड़ झगड़ के खाने का श्राप दिया| 

क्योकि केवल वट वृक्ष ने ही श्री राम जी को सारी सच्चाई बताई थी इसलिए सीता जी ने वट वृक्ष को आर्शीवाद दिया की पिंडदान में वट वृक्ष की उपस्थिति जरुरी होगी साथ ही सीता जी ने वट वृक्ष को लम्बी आयु और दूसरो  को छाया प्रदान करने का भी वरदान दिया और कहा की भविष्य में पतिवृता स्त्रियाँ वट वृक्ष की पूजा करके जपने पति की लम्बी आयु की कामना करेंगी|

दोस्तों अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो कमेंट में जय श्री राम लिखिये|

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