बेताल और बेताल साधना | Betal/Vetala Sadhana

बेताल और बेताल साधना | Betal Sadhana
भारतीय पौराणिक कथाओं और लोककथाओं का संसार अनगिनत रहस्यमयी और आकर्षक पात्रों से भरा पड़ा है। इन्हीं पात्रों में से एक है ‘बेताल Betal’, जिसे ‘वेताल Vetal’ भी कहा जाता है। बेताल का नाम सुनते ही हमारे मन में राजा विक्रमादित्य और उनके कंधे पर बैठे बेताल की छवि उभर आती है, जो हर बार एक नई कहानी और एक कठिन प्रश्न के साथ राजा की बुद्धि और न्याय की परीक्षा लेता है। लेकिन बेताल केवल एक कहानी सुनाने वाला भूत नहीं है, बल्कि वह ज्ञान, रहस्य और नैतिकता का प्रतीक है।
बेताल कौन है | what is betal ?
शाब्दिक रूप से, ‘वेताल’ संस्कृत का शब्द है, जिसका संबंध उन आत्माओं या प्राणियों से है जो शवों (मृत शरीरों) में प्रवेश कर उन्हें अस्थायी रूप से जीवित कर देते हैं। ये साधारण भूत-प्रेत से अलग होते हैं। बेताल को अक्सर श्मशान घाट में पेड़ों, विशेषकर पीपल या बरगद के पेड़ पर उल्टा लटका हुआ चित्रित किया जाता है।
इनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ये केवल एक डरावने प्राणी नहीं हैं, बल्कि इनके पास अपार ज्ञान, तर्क शक्ति और भविष्य देखने की क्षमता होती है। वे मानव स्वभाव और धर्म-अधर्म की गहरी समझ रखते हैं।
प्राचीन कथा साहित्य में बेताल का अनेकों प्रकार का उल्लेख आता है | वास्तव में बेताल कोई कथा जनित काल्पनिक पात्र न होकर वास्तविक शक्ति होता है | कई तांत्रिक ग्रंथों में भी बेताल का उल्लेख होता है | बेताल शक्ति के प्रतीक माने गए हैं और यह अनेकों प्रकार के कार्यों, मनोरथों की पूर्ती में सहायक होते हैं | तंत्र शास्त्र इन्हें भगवान् शंकर का एक गण मानता है |
बेताल साधना | Betal Sadahan
तंत्र साधना से पूर्व बेताल साधना का उल्लेख नहीं मिलता है | इसलिए सामान्य मान्यता के अनुसार बेताल साधना तंत्र काल से ही प्रचलित मानी जाती है | विक्रमादित्य की कथाओं में बेताल का उल्लेख आया है | कथा साहित्य में बेताल का उल्लेख काल्पनिक भी हो सकता है लेकिन तंत्र शास्त्र में इन्हें पूर्ण मान्यता प्राप्त है | विक्रमादित्य से हजारों वर्ष पूर्व के तंत्रशास्त्र महाकाल संहिता के कामकला काली खंड में ताल बेताल या वीर बेताल की साधना और पद्धति का उल्लेख है यद्यपि यह सामान्य व्यक्ति के लिए नहीं अपितु मात्र राजाओं के लिए ही है और उनके लिए ही संभव भी है | बाद के तंत्र शास्त्रों में इसका सरलीकरण हुआ है |
बेताल की शक्ति | Betal Ki Shakti
गुणधर्म, स्वभाव एवं शक्ति के कारण बेताल को भूतों -प्रेतों तथा पिशाचों से उच्च माना गया है | यह सब भी रुद्रगण कहे गए हैं किन्तु इनकी शक्ति और स्थिति बेताल से नीचे होती है | बेताल के भी कई रूप होते हैं तथा इनकी सिद्धि की विधियां और मंत्र भी अलग अलग होते हैं | एक ही प्रकार के बेताल की भी अनेक विधियाँ और मंत्र होते हैं | बेताल की शक्ति कर्ण पिशाचिनी से अधिक होती है किन्तु सिद्धि के पश्चात साधक को संयमी और दृढ चरित्र बना रहना पड़ता है | वह कर्ण पिशाचिनी के साधक की तरह उछ्रिन्ख्ल जीवन नहीं जी सकता |
बेताल सिद्धि के फायदे | Betal Sidhhi ke fayde
Betal बेताल सिद्धि के लिए उत्सुक साधक को निर्भीक, निडर और पूर्ण दुस्साहसी होना चाहिए | शक्ति के प्रतीक होने के कारण बेताल भी समस्त प्रकार के कार्यों, मनोरथों को पूरा करने में सक्षम है | कर्ण पिशाचिनी के साधक की तरह बेताल सिद्धि प्राप्त साधक पर वैसा प्रभाव दृष्टिगोचर नहीं होता जैसा प्रभाव कर्ण पिशाचिनी का उसके साधक पर पड़ता है | व्यक्ति के स्वाभाविक गुण और प्रभाव यथावत बने रहते हैं | बेताल की भूत ,भविष्य और वर्त्तमान तीनों में गति मानी गयी है अर्थात यह कर्ण पिशाचिनी की तरह मात्र भूत और वर्तमान में नहीं अपितु भविष्य में भी झाँक सकता है | इनका विशेष महत्व दिए गए कार्य को शीघ्र पूरा करने में माना गया है | सिद्धि के पश्चात् साधक, बेताल से जो कुछ कहे वह उसे तत्काल पूरा करते हैं|
बेताल साधना के लिए स्थान | Place for Vetala Sadhana
Betal बेताल साधना घर पर नहीं हो सकती |इसकी साधना के लिए एकांत शिव मंदिर विशेष उपयुक्त है | श्मशान और हरे भरे घास के मैदान में भी बेताल की साधना की जा सकती है, लेकिन स्थान एकांत होना चाहिए जहाँ किसी प्रकार का विघ्न न हो, शोरगुल न हो तथा और व्यक्तियों का आवागमन न हो | यद्यपि आसुरी सिद्धियों की तरह बेताल न तो अपनी साधना में विघ्न ही पैदा करते हैं और न साधक को भयभीत ही करते हैं फिर भी तंत्र मन्त्र सिद्ध करने वाले साधक को पूर्ण निडर तथा दुस्साहसी होना चाहिए | बेताल के सभी स्वरूपों के आगमन की प्रक्रिया सामान नहीं होती |
बेताल के एक स्वरुप अगिया बेताल का आगमन भयानक हो सकता है | जिसमे साधक की ओर आग की लपटें बढ़ सकती हैं, प्रकृति की अन्य शक्तियों में विचलन होने से वह साधक को डरा सकती हैं | वातावरण भयानक हो सकता है | अचानक किसी उच्च अमानवीय शक्ति के सामने आने से भी व्यक्ति घबरा सकता है | ऐसी स्थिति में उसका नुक्सान हो सकता है अतः साधक को हिम्मती होना चाहिए |
बेताल साधना में सावधानियाँ
प्रत्येक साधना के विधान में स्पष्ट उल्लेख रहता है की ईष्ट जिसे भी वह सिद्ध करना चाहता है, उसके प्रकट होने पर उसके स्वरुप को देखकर साधक भयभीत और मूक न हो जाए, साधना स्थल से भाग न खड़ा हो | ऐसा करने से साधना खंडित होकर निष्फल हो जाती है | कुछ अत्यंत उग्र सिद्धियों में तो साधना खंडित होने पर साधक स्मृति खो बैठते हैं, पागल हो जाते हैं, कोई महारोग हो जाता है अथवा मृत्यु हो जाती है |
समस्त प्रकार की उग्र मंत्र तंत्र की साधनाएं न तो साधना द्वारा सिद्धि की सत्यता परखने के उद्देश्य से की जानी चाहिए और न केवल अनुभव प्राप्त करने के दृष्टिकोण से की जानी चाहिए| अन्यथा परख और अनुभव की जिज्ञासा, दुर्घटना का शिकार बना सकते हैं | यह मंत्र तंत्र की उग्र साधनाएं अमानवीय शक्तियों की सिद्धि की हैं | इन्हें हार्दिक इच्छा, पूर्ण संकल्प, दृढ़ता, आत्मविश्वास और साहस के साथ ही समस्त साधन तथा शक्ति होने पर ही करना चाहिए |
बेताल का प्रकट होना | Appearance of Vetal
यदि बेताल की साधना में बेताल साकार रूप में प्रकट हो तो साधक को घबराना नहीं चाहिए | माला अर्पित कर प्रणिपात करे, मंत्र का नम्रतापूर्वक पाठ करे | यद्यपि ऐसा कम ही होता है की बेताल साकार रूप में आये फिर भी आखिर बेताल का स्वरुप है साक्षात शक्ति का रूप | मनुष्य के लिए रोमान्चारी होगा यह अनुभव | लाख प्रयास करने पर भी व्यक्ति असंतुलित हो जाता है, इसी स्थिति से उबरने को कहा गया है की बेताल के गले में माला पहनाकर उसके प्रति भक्ति प्रकट करे हुए प्रणिपात कर प्रणाम करना चाहिए | इससे साधक को साहस और शक्ति प्राप्त होती है | उसकी साधना असफल होने से बच जाती है |
Vetal बेताल अग्नि के प्रतीक रूप में या शून्य में बोलते हुए प्रकट होता है | साक्षात साकार रूप में वह कम ही प्रकट होता है, केवल साधक पर विशेष प्रसन्न होने पर ही बेताल साकार रूप में साधक को दर्शन देता है | यह समय साधक के जीवन का अभूतपूर्व और असाधारण समय होता है |
बेताल सिद्धि में समय | Time needed for betal siddhi
बेताल साधना की सिद्धि की कोई समय सीमा निश्चित नहीं है |मात्र कुछ हजार या लाख ,सवा लाख मंत्र जपने से बेताल सिद्ध हो जाए जरुरी नहीं | केवल कुछ हजार मंत्र पर भी हो सकता है और कई लाख जपने पर भी हो सकता है | कुछ दिन में सिद्धि मिल सकती है और कई साल भी लग सकते हैं | सिद्धि व्यक्ति की शक्ति, आत्मबल, भावना आदि पर निर्भर करती है | एक बार साधना शुरू होने पर लगातार तब तक जारी रखनी होती है जब तक की सिद्धि न मिल जाए|
हम बेताल साधना के इच्छुक साधको से कहना चाहेंगे की जब तक आपके पास गुरु न हों ,आपके गुरु सक्षम न हों आप इस तरह की साधना के बारे में सोचें भी नहीं | बिन गुरु के कभी बेताल साधना नहीं हो सकती |आपको सिद्धि तो मिलेगी नहीं, आपका बहुत अधिक अहित अलग से हो सकता है | पहले गुरु तलाशिये, वह भी ऐसा गुरु जिसने या तो बेताल साधना की हो या किसी उग्र महाविद्या को सिद्ध किया हो जैसे काली, तारा, बगला |इसके बाद ही आप उनकी अनुमति और मार्गदर्शन में आगे बढिए | यह भूत प्रेत की सिद्धि नहीं है| बहुत उच्च शक्ति की साधना है जो आपके साथ किसी मंदिर शक्तिपीठ में भी जाती है |