तंत्र विद्या की शुरुआत कब और कैसे हुई | Tantra Vidhya

तंत्र विद्या की शुरुआत | Tantra Vidhya
तांत्रिक साधनाओं (Tantra Vidhya) के प्रादुर्भाव से सम्बंधित दो प्रकार की धारणाएँ हैं, कुछ मानते हैं, तंत्र सर्वप्रथम कश्मीर से उदित हुआ हैं तथा कुछ मानते हैं, तांत्रिक साधनाओ का उदय बंगाल प्रान्त से हुआ हैं। मुख्य रूप से बंगाल के तांत्रिकों ने तंत्र साधनाओ का, संपूर्ण भारत वर्ष, तिब्बत, चीन में खूब प्रचार प्रसार किया, तथा आज भी बंगाल तंत्र साधनाओ हेतु विख्यात हैं। बंगाल से तंत्र विद्या, इंद्र-जाल, काला जादू का घनिष्ठ सम्बन्ध हैं तथा सर्वाधिक शक्ति पीठ इसी प्रान्त में विद्यमान हैं।
कामाख्या तंत्र पीठो में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तथा शक्तिशाली माना जाता हैं, जो बंगाल प्रान्त में ही हैं।
आदि काल से ही, कामाख्या तंत्र, इंद्र-जाल तथा काला जादू हेतु प्रसिद्ध हैं। इस के अलावा त्रिपुरेश्वरी, कालिका, त्रिसोता या भ्रामरी, नलहटेश्वरी, फुल्लौरा, कंकलितला, नंदिनी, योगेश्वरी, महिषमर्दिनी, कुमारी, कपालिनी, अपर्णा, महालक्ष्मी, श्रावणी, विमला, जयंती, जुगाड़्या, भवानी, मंगल चंडी, बाहुला, सुगंधा शक्ति पीठ बंगाल प्रान्त में ही विद्यमान हैं, तंत्र क्रियाएं इन्हीं शक्ति पीठो पर अधिक तथा शीघ्र फल दायी होती हैं।
तंत्र के अंतर्गत बहुत प्रकार की अलौकिक तामसी शक्ति प्राप्त करने का वर्णन हैं, जिन का प्रयोग घोर कर्मों में भी की जाती हैं, मारण, वशीकरण, उच्चाटन, स्तंभन, मोहन घोर कर्मों के श्रेणी में आते हैं। परन्तु इन कर्मों को सामाजिक सुरक्षा तथा उपकार हेतु भी किया जाता हैं।
तंत्र विद्या | Tantra Vidhya
तंत्र विद्या का सम्बन्ध, उत्पत्ति, विनाश, साधना, अलौकिक शक्तियों से होते हुऐ भी मुख्य उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार मोक्ष ही सर्वोत्तम तथा सर्वोच्च प्राप्य हैं। मोक्ष यानी जन्म तथा मृत्यु के बंधन से मुक्त हो अपने आत्म तत्व को ब्रह्म में विलीन करना, मोक्ष कहलाता हैं , मानव ८४ लाख योनि प्राप्त करने के पश्चात्, मानव देह धारण करता हैं। तंत्रो के अनुसार मानव शरीर ३ करोड़ नाड़ियों से बना हैं तथा इन में प्रमुख इड़ा, पिंगला तथा सुषुम्ना हैं तथा ये मानव देह के अंदर रीड की हड्डी में विद्यमान हैं। तंत्र विद्या द्वारा, कुंडलिनी शक्ति को जागृत कर, इन्हीं तीन नाड़ियों द्वारा ब्रह्म-रंध्र तक लाया जाता हैं, यह प्रक्रिया पूर्ण योग मग्न कहलाता हैं तथा अपने अंदर ऐसे शक्तियों को स्थापित करता हैं, जिस से व्यक्ति जो चाहे वही कर सकता हैं।
इसके अलावा अन्य मत से तन्त्र मुख्यत: तीन भागों में विभक्त है- कादि, हादि और कहादि! इन्हें कूट्लय कहते हें!
जो तन्त्र महाशक्ति श्री महाकाली के विषय का प्रतिपादन करता है वह कादि है,जो श्रीविद्या के रहस्य का प्रतिपादन करता है वह हादि है और जो तन्त्र तारा के रहस्य को प्रतिपादित करता है वह कहादि कहलाता है !
कादि, हादि और कहादि तन्त्र साधना क्षेत्रमत मान लिए गए हैं, तदनुसार कादिमत,हादिमत और कहादिमत के अलग-अलग मन्त्र और यन्त्र विभक्त कर दिए गर है! इन मन्त्रों और यन्त्रों की साधनाएँ भी अपने-अपने मत के अनुसार भिन्न-भिन्न हैं!जैसे कादिमत(महाकाली) के सम्बब्धित यन्त्र केवल त्रिकोणों से बनते हैं!
हादिमत(श्रीविद्या) से सम्बन्धित यन्त्र शिव शक्ति त्रिकोणों से बनते हैं!
कहादिमत(तारा) से सम्बन्धित यन्त्र उभयात्मह होते हैं अर्थात शक्ति त्रिकोणों और शिवशक्ति त्रिकोणो का मिश्रण इन यन्त्रों की रचना में होता हैं!
Tantrik Sadhana | तान्त्रिक साधना
तान्त्रिक साधना शैव,शाक्त,वैष्णव,,सौर और गाणपत्य पाँच प्रकार की है!
शिव की साधना करने वाला शैव, शक्ति की साधना करने वाला शाक्त,विष्णु की साधना करने वाला वैष्णव ,सूर्य की साधना करने वाला सौर और तन्त्रों में सम्प्रदाय भेद,अम्नाय भेद, महाविद्या भेद होने से विभिन्न तन्त्र शास्त्र ओर विभिन्न तान्त्रिक साधनाएँ हैं!!…..
Tantra Sastra in Tantra Vidhya
इन शास्त्रों, ग्रन्थों की गणना सम्भव नहीं है! शाक्त सम्प्रदाय में ही ग्रन्थ सैकडों-हजारों की संख्या से अधिक है! कालपर्यय मार्ग से शाक्त तन्त्र 64 हैं,उपतन्त्र 321 हैं,संहिताएँ 30 हैं,चूडामणि 100 हैं, अर्णव 9 हैं,यामल 8 हैं, इनके अतिरिक्त डामरतन्त्र,उड्डामर तन्त्र, कक्षपुटी तन्त्र, विभीषणी तन्त्र, उद्यालाप तन्त्र आदि हजारो ,लाखों की संख्या में है!
अगर यह कहा जाए की तन्त्र किनारा रहित सागर है तो गलत न होगा ! विविध प्रकार के तन्त्र अधिकारी भेद से भिन्न-भिन्न कोटि में नियोजित होतें है! यान-काल आदि भिन्न-भिन्न पर्यायों में इनकी गणना अलग-अलग है, इसलिए कोई भी यह कहने का दावा नही कर सकता की तन्त्र विद्या केवल इतनी ही है!तन्त्र साधना में दीक्षा की आवश्यक्ता साधक को शुद्ध बनाने के लिए है! दीक्षारुपी अग्नि किण्डली के जाग्रत होने से साधक का मल नष्ट हो जाता है कर्ममल समाप्त हो जाता है और वह शिवतत्वमत बन जाता हैं!
दीक्षा ,अभिषेक,भूतशुद्धि प्रत्येक तान्त्रिक साधना के प्रारम्भ का ऎसा विधान है,जो विग्यान और क्रिया द्वारा साधक का निर्मल हो जाना ही ईन विधानो क मुखय उद्देश्य है! निर्मलता प्राप्त होने पर साधक को सहज अवस्था प्राप्त होती है और सहज अवस्था प्राप्त होने पर शक्ति बोध होता है
हिंदू धर्म में हजारों तरह की विद्याओं और साधनाओं का वर्णन मिलता है। साधना से सिद्धियां प्राप्त होती हैं। व्यक्ति सिद्धियां इसलिए प्राप्त करना चाहता है, क्योंकि या तो वह उससे सांसारिक लाभ प्राप्त करना चाहता है या फिर आध्यात्मिक लाभ।